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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बसंत कब घबराता है /


हाथों में फूलों को लेकर
जब तुम मुस्काती हो
तब सावन मुस्काता है //

नयनों में काजल भरकर
जब पलकें गिराती हो
तब भादों शरमता है //

गोरी बाहें जब हवा में झूलें
और दुपट्टा मुझ को छू ले
तब बसंत घबराता है //

13 टिप्‍पणियां:

  1. जब दुपट्टा मुझ को छू ले
    तब बसंत घबराता है //
    WAAH SIR JEE/

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  2. सावन का मुस्कराना,भादों का शर्माना,बसंत का घबराना,....बहुत खूब,..बबन जी
    बेहतरीन रचना,लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
    ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

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  3. Bahut sunder - basant ritu aur kabiyon ki kabita - dono ka gadha sambadh raha hai / Aap ki kabita bahoot sunder hai.

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  4. गोरी बाहें जब हवा में झूलें
    और दुपट्टा मुझ को छू ले
    तब बसंत घबराता है //ऐ

    लाज़वाब अहसास...बहुत भावमयी अभिव्यक्ति...

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  5. दिल के सुंदर एहसास
    हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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  6. चर्चा मंच से इस ओर आये..
    रचना अच्छी है ..
    kalamdaan.blogspot.in

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  7. नयनों में काजल भरकर
    जब पलकें गिराती हो
    तब भादों शरमता है //... बेहतरीन भईया ... कल्पना के पंख की कोई ओर - छोर नहीं है .. !!

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  8. बहुत हि सुन्दर वसंत के भावनाओं को दर्शाती रचना...

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  9. सावन का मुस्काना
    भादों का शरमाना
    वसंत के आते ही
    मन का ये घबराना।
    बहुत ही सराहनीय.......
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता कुत्ता और वेश्या

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