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रविवार, 5 अगस्त 2012

मुझे रश्क है ..

मुझे रश्क है ..
आपकी आँखों से
जिसने चुम्बकित कर
मुझे आलिगन  को मजबूर किया //

मुझे रश्क है
हरी दूबों पर टिकी
सुबह की उन ओसों से
जो आपके परों को धो देती है //

और सुनिए ...
मुझे रश्क है
इन हवाओं से भी
जो आपकी जुल्फों से आलंगित हैं

14 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे रश्क है
    हरी दूबों पर टिकी
    सुबह की उन ओसों से
    जो आपके परों को धो देती है //

    ये भी एक चाहत का निराला अंदाज़ है

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  2. sunder rachana.aise hi likhte rahen .

    plz vsit my blg. purvaai.blog spot .com

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  3. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 06-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-963 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |

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  5. बेहतरीन उत्कृष्ट प्रस्तुति ...बधाईयाँ जी

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  6. मुझे रश्क है
    हरी दूबों पर टिकी
    सुबह की उन ओसों से
    जो आपके परों को धो देती है

    बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी सुन्दर रचना ....

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  7. और मुझे भी रश्क है ....
    आपकी रचनाओं पर
    जो खींच लाती हैं हमें
    कहीं से भी, अपने करीब में
    और दे जाती हैं मुस्कान
    अधरों को संजोने के लिए

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  8. शुक्रिया अजय गोस्वामी जी

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  9. जो आपके पैरों को धौ देतीं हैं ,
    ....................

    जो आपकी जुल्फों से आलिंगित हैं
    बढ़िया प्रस्तुति है .

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  10. खूब सूरत पंक्तियों के लिए बधाई

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