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शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

फिदरत

रंग बदलने को यहां ,कितने लोग है सारे
वादा कर  नहीं ला पाते ,वे चाँद- सितारे  //

चुटकियों में तोड़ देते हैं, लोग अग्नि के फेरे
बस, यु ही कहते रहते हैं, मैं तेरा ,तुम मेरे //

रोज बदलते है, लोग यहां कितने भेष ऐ बबन
तोड़ लेते है फूल , चाहे उजड़ जाए ये  चमन //

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-07-2014) को "मैं भी जागा, तुम भी जागो" {चर्चामंच - 1666} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. छोटी छोटी रचनायेन अपने आप में विशेषता है !

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