रंग बदलने को यहां ,कितने लोग है सारे
वादा कर नहीं ला पाते ,वे चाँद- सितारे //
चुटकियों में तोड़ देते हैं, लोग अग्नि के फेरे
बस, यु ही कहते रहते हैं, मैं तेरा ,तुम मेरे //
रोज बदलते है, लोग यहां कितने भेष ऐ बबन
तोड़ लेते है फूल , चाहे उजड़ जाए ये चमन //
वादा कर नहीं ला पाते ,वे चाँद- सितारे //
चुटकियों में तोड़ देते हैं, लोग अग्नि के फेरे
बस, यु ही कहते रहते हैं, मैं तेरा ,तुम मेरे //
रोज बदलते है, लोग यहां कितने भेष ऐ बबन
तोड़ लेते है फूल , चाहे उजड़ जाए ये चमन //
बढ़िया :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.............!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-07-2014) को "मैं भी जागा, तुम भी जागो" {चर्चामंच - 1666} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
छोटी छोटी रचनायेन अपने आप में विशेषता है !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक ..
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