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शनिवार, 29 मई 2010

मित्र की मदद करो (मुहावरे दार कविता )

दांत कटी रोटी
जैसे मित्र हो तुम
जरुरत पर पैसे देकर मदद की ....
अब कन्नी काटते हो
पैसे लेकर ईद के चाँद हो गए हो
दवे पावँ घर आते हो
क्या समझते हो
कानों - कान खबर होगी

पैसा मांगने पर .....
आँखे लाल -पीली करते हो
बन्दर घुरकी देते हो
और अंगूठा दिखाते हो

मैं कान का कच्चा नहीं हू
तुम्हारी बातो से मुझे
दाल में काला लग रहा था
आज तुम्हारी
ईट से ईट बजा दूंगा
अपना सिक्का जमा लूँगा
ढोल पिटूगा दोस्तों के बीच
और तुम्हे ......
चुल्लू भर पानी में डूबने को मजबूर कर दूंगा
हाथ -पावं फूलने लगा क्या
आज मैं तीन-तेरह करके रहूगा
नों - दो- ग्यारह नहीं होने दूंगा
पुलिस आने तक
आज तुमसे पैसा लेकर ....
घी के दिए जलाउंगा
तुम्हारे मित्रो के
घाव पर नमक छिड़क कर
घोडा बेचकर सो जाऊँगा
फिर पैसे उधार देने का मतलव होगा
अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना

कविता पढ़ कर ...
रंग में भंग हो गया क्या ??

2 टिप्‍पणियां:

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