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रविवार, 23 मई 2010
एक विधुर का अंतर्द्वंद
कहते है ---
आँखे बोलती हैं ...
उसकी आँखे किसे ढूढती है
मुझे नहीं पता ?
चंडीगढ़ के रौक़ गार्डेन में
नेक चंद की बनी मूर्तियों में
अब उसे कोई आकर्षण नहीं दिखता ॥
खजुराहो और कोणार्क की मंदिरों के
बाहरी दीवालों पर रतिक्रिया में लिप्त
मूर्तियों के बनाये जाने का तर्क
ढूढना चाहता है वह ॥
उसे याद आता है
गुलमर्ग की हसीन वादियां
नर्मदा नदी के धुयाधार घाट पर
गुलाबी संगमरमर के बीच
आलिंगन का आनंदित छन
मौन्ट-आबू का वह झील
जिस पर बोटिंग की थी ...
अपनी चाँद जैसी पत्नी के साथ ॥
क्या पहाड़ सी लम्बी जिन्दगी
सिर्फ उसकी यादो के सहारे कट सकेगी
इस अंतर्द्वंद में वह ...
हर दिन सौ बार जीता / सौ बार मरता
माँ को किचेन में देख
उसे लगता .... एक ही साथ
असंख्य कीलें
ठोक दी गयी हो
उसकी छाती में ॥
बच्चे के रोने की आवाज़ से
उसका अंतरमन
वापस लौटता है ॥
टी ० वी खोलता है ...
हर चैनल पर ....
अधनंगी औरतो का डांस
और कामुक उत्तेजक दृश्य ...
वासना हिलोरे लेने लगती है ॥
नई माँ लाने के बारे में ....
सोचता है ...
बच्चे के लिए और अपनी माँ के लिए भी ॥
मगर अंदर से सिहर जाता है ...
एक लघु -कथा में पढ़ा था उसने
एक सौतेली माँ / बच्चे को हमेशा .....
गोद में रखती थी .....
इसलिए नहीं कि
वह उसे प्यार करती थी .....
बल्कि इसलिए कि
वह उसे लंगड़ा बनाना चाहती थी॥
आंसू की धार निकलती है ...
और वह ...
अपनी माँ की गोद में सिर रख
चीत्कार कर उठता है !!!!
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बबन जी, बहुत ही संवेदनशील विषय चुना है आपने................किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है ..........और सत्य है...........अपने पुत्र की संवेदना एक माँ से बेहतर कौन समझ सकता है .................कोई नहीं
जवाब देंहटाएंbahut acchi aur samvedan sheel kavita
जवाब देंहटाएंpahad is zidagi aur prakrati se mili bhookaur mamta ke beech ke sangharsh ka bahut accha chitran
kabita dil ko chuney bali hai.thanks
जवाब देंहटाएंbahut marmik abhivyakti
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