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मंगलवार, 30 नवंबर 2010

मैं आदमी हूँ

सुनो .....
जंगल के जानवरों सुनो
कान खोल कर सुनो
मैं तुम्हारे जैसा
वफादार नहीं //

मैं आदमी हूँ
मौकापरस्त हूँ
ज़रूररत पड़ने पर
तुम्हारे पैर पकडूगा
भुलाबे में मत रहना
अगर स्वार्थ साधने में
ज़रा भी बाधा बने तुम
मरोड़ दूंगा तुम्हारी गर्दन //

भले ही बेशक
तुम मुझे
दधिची की औलाद समझते रहो
जिन्होंने दान कर दी थी अपनी अस्थियाँ //

अंत में ॥
एक राज की बात
मैं जिस थाली में खाता हूँ
उसी में छेद भी करता हूँ
मैं ईश्वर की अनमोल रचना हूँ //

सोमवार, 29 नवंबर 2010

ईश्वर उवाच

कहाँ -कहाँ खोजोगे मुझे
मेरा कोई घर ठिकाना है क्या
व्यर्थ गवांते हो अपनी ऊर्जा //

क्या तुम समझते हो
थोडा सा होम
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी कपूर
घंटी का स्वर
और आरती गाकर
पा लोगे मुझे //

सुनो ॥
मेरे और तुम्हारे बीच की दुरी
गाडियों में लगे
दो पहियों के सामान है
दो समानांतर रेखाओ जैसे //

मगर मैंने पढ़ा है
ठोस ज्यामिति के सिद्धांत कहते है
अंनत पर मिलती है
दो समानांतर रेखाए //

राज की बात बता देता हूँ
अपनी बूढी माँ और बूढ़े बाप का
झुरियो वाला चेहरा देखना
शायद ...
मैं तुम्हें वही मिल जाऊ //

रविवार, 28 नवंबर 2010

मैं राम को वनवास नहीं भेजना चाहता

नहीं नहीं ....
मैं दशरथ नहीं
जो कैकेयी से किये हर वादे
निभाता चलूँगा //

मैं .....
खोखले वादे करता हूँ तुमसे
मुझे
अपने राम को वनवास नहीं भेजना //

क्या हुआ
जो टूट गए
मेरे वादे
अपने दिल को
मोम नहीं
पत्थर बनाओ प्रिय //

शनिवार, 27 नवंबर 2010

मैं अब आवाज दूंगा

कब तक दौड़ता रहूंगा
राह काटने वाली बिल्ली के पीछे
अंधविश्वाशो की किताब
मैं अब जला दूंगा //

क्यों नहीं सूखेगे गरीब के आंसू
गरीबों के खून से बनी सोने की लंका
हनुमान बन
मैं अब जला दूंगा //

खड़े होकर खाली खेत नहीं देखूगा
भूख से सोये बच्चों को पेट भरने के लिए
किसान बन
मैं अब जगा दूंगा //

तेरा पढना भी क्या पढना यारो
जो गर की काम ना आये
बेजुवानो की जुबान बन
मैं अब आवाज दूंगा //

अल्लाह को प्यारा हो गया एक बन्दा

पेड़ रंगे थे
घर सजे थे
और यायायात बन्द
कारण ....
मंत्री जी का है आगमन ॥


उधर चिकित्सा -वाहन से
निकलती दर्द की चीख
दब गई सायरन के आवाज में
बन्दा अल्लाह को प्यारा हो गया ॥

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

चार रोटियाँ

( समाप्त हुए चुनाब में बिहार के लोगो ने जाति से हटकर वोट दिया । प्रस्तुत है एक आम बिहारी की मनोभावना )

अब शान से कहूंगा
मैं बिहारी हूँ
मरोड़ दी है गर्दन मैंने
जाति नाम के दैत्य की ॥
मैं .....
उन मेहनतकशो की संतान हूँ
जिनके बल पर चमका है
मारीशस /फिजी और सूरीनाम ॥

पहले मै लगाता था तेल
अपनी मुछों पर
साथ ही अपनी लाठी पर भी
मगर ...
अब आने लगी है खुशबु
विक्रमशिला और नालंदा के
खंडहरों से ॥

अब नहीं जाउंगा मुंबई
राज ठाकरे की गालियाँ सुनने
नहीं जाउंगा
पंजाब और हरयाणा
सरदार के खेतों में काम करने ॥

अब नहीं डरुंगा
गंगा /गंडक के दियारे में बोई
अपनी फसल काटने में
क्योकि मैं जानता हूँ
अब मिलेगा
हर हाथ को काम
और हर खेत को पानी
तो सबके थाली में होगी
चार रोटियाँ ॥

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

पदचिन्ह

क्यों न हम
भौतिकी का एक प्रयोग करें
लोहे को
चुम्बक से रगड़ो
उसमें आ जाता है
चुम्बकीय गुण ...//

हम भी बन जायेगे
चुम्बक
गर चलेगें
महापुरुषों द्वारा बनाई
पदचिन्हों पर ....//

सोमवार, 15 नवंबर 2010

मैं हवाई जहाज उडाता हूँ

माँ की गोद में
सीखा तुतलाना
पिता की ऊँगली पकड़
सीखा चलाना
गुरूजी से सीखा
'क ' 'ख 'ग' और
भाईचारा /प्रेम /स्नेह /परोपकार की
साईकल चलना ॥

किशोर वय में सीखा
तितलियों के पीछे भागना
फिर सीखा
पीछे से धक्का देना
दूसरों को लंगड़ी मार
आगे निकल जाना ॥

अब .....
रावन /कंस /कौरव के
बनाए रास्ते पर फर्राटे भरता हूँ
और
बेईमानी /फरेब का
हवाई जहाज उड़ाता हूँ ॥

रविवार, 14 नवंबर 2010

मन का दर्द

(यह मेरी पहली रचना है जो मैंने १९८० में लिखी थी ..कैसे हुई इस कविता का जन्म ...नीचे पढेगे ..यह पटना से प्रकाशित लघु पत्रिका "पहुँच " में छपी थी )

किसे सुनाऊ
इसे कब तक सहलाऊ
कोई क्या समझेगा
दूसरे के मन का दर्द
दर्द के कारण
हो गई है मेरी आंखें सर्द ॥

हर समय नहीं होता
यह दर्द
जब सोच का बैलून फटता है
तब उठता है
मन में दर्द ॥

अन्य दर्दो की दवाये भी हैं
पर इसकी कोई दवा नहीं
इसीलिए सोचता हूँ
चिंता छोड़ काम पर लग जाऊ
शायद इसी उपचार से ठीक हो जाए
मन का दर्द ॥

मैं बिहार के नालंदा जिला में अवस्थित जैनों के प्रसिद्द तीर्थ पावापुरी से चार किलोमीटर दूर एक निहायत ही मामूली विद्यलय से मेट्रिक किया ...पुरे स्कुल में सबसे अधिक अंक लाने के वावजूद मेरा नामांकन पटना साईस कालेज में नहीं हुआ ...मगर मेरे एक मित्र का ....जाति गत आरक्षण के आधार पर नामांकन हो गया । बालमन में टीस उठी ...और यह कविता अपने आप बन गई ।

शनिवार, 13 नवंबर 2010

अंधेर नगरी -चौपट राजा

मेरी अक्ल चरने गई है
कुछ समझ में नहीं आता
६२ वर्ष के
गालों पर झुर्रियों वाले
नकली दांतों वाले
और एक सुनहली लाठी के मित्र
मेरे रिटार्ड चाचा जी को
पुनः नौकरी क्यों लगी ॥

और जानते है
मजे की बात
उनका बेटा बेदम है
रोजगार अखबार पढ़ते -पढ़ते ॥


कैसी है ये नीति
कैसे है ये नेता
अंधेर नगरी , चौपट राजा
बजाते रहते
बिना सुर के बाजा॥

अगर सजनी हो दिलदार


( "एक दिन मैं भी विक जाउंगा " कविता पर आये कमेंट्स के बाद मैं अपने निष्कर्ष पर पहुँच गया )

जैसे .......
पर्व -त्यौहार
बना देती है हमारी जिन्दगी
मजेदार

गरम -मशाले
बना देती है सब्जियां
खुशबूदार

खिड़कियाँ
बना देती है कमरे को
हवादार

ठीक वैसे ही
अगर बच्चे हो समझदार
और सजनी हो दिलदार
तो
सजन क्यों न बने
ईमानदार ॥

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा

आजिज हूँ
बच्चों के डिमांड के आगे
सबको चाहिए
कुछ न कुछ
शहर जाते ही
हवा लग जाती है उन्हें ॥

पत्नी के ताने
अलग से
क्या करते है आप
सब कहाँ से कहाँ निकल गए
ज़माने से कदम मिलाईये
अपने लिए भी
बँगला -गाडी खरीदिये ॥

आखिर... मन को
कब तक दबाउंगा
एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा ॥

राजनीति

राजनीती ...
एक गन्दा खेल !!!

इसकी हर चाल में
नेता बनते
हमेशा
राजा और मंत्री ॥

और ....
जनता
हमेशा बनती है
उनका
हाथी /घोडा और सिपाही॥


क्या जनता
हमेशा बनती रहेगी
उनकी कठपुतली ॥

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

विटामिन की गोलियाँ

आज नहीं रुक रही थी
फाईल पर उनकी कलम
नहीं खोज रही थी
उनकी आंखें
सेल्फ पर रखे
सरकारी नियमो की किताब
पैर में मानों
लग गए हों पहिये ॥

मैंने भी खाई है
विटामिन की गोलियाँ
मगर उसमे नहीं होती
नोटों की गद्दियों जैसी ऊर्जा ॥

बुधवार, 10 नवंबर 2010

हे ..ईश्वर

हे इश्वर
तू जला मन की दीपक
भर दे तू मुझ में
परोपकार का तेल
और दे दे
धैर्य का
एक दिया सलाई .
जब कभी बुझाने लगे
यह दीपक ...
तो फिर से जला सकू ...

थोड़ी सी लज्जा दे
थोडा सा मृदुलभाषी बना
पहना दे मुझे
विन्रमता का गहना
हे ..ईश्वर
मेरे दिल को अपना नीड़ बना ॥

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

प्यार का पहला बीज


शायद तुम्हें याद हो
दौड़ चली थी तुम
चांदनी रेत पर
मानो पैर नहीं
एक जोड़ा पंख हो ॥

उड़ने लगी थी तुम
उस ऊर्जा के बल पर
जो मैंने तुम्हें दी थी
अपनी हथेलियो से
तुम्हारी हथेलियों में
जो मेहँदी के रंग से जवान था ॥

गुजर गई थी सारी रात
कापते लवों को रोकने में
पहली बार
थरथराया था मेरा शरीर
पहली बार पढ़ा था मैंने
किसी के आंखों की भाषा
और शायद
हमदोनो ने बो दिया था
प्यार का पहला बीज ॥

हर दम्पति किसान बने

करना होता है साफ़
खर-पतवार
किसानों को
फसलों के बीच से ॥
देना होता है
नियत समय पर पानी
तब जाकर देती है फसलें
एक अच्छी उपज ॥

मित्रों .....
हर दम्पति को
बनाना होगा किसान
एक स्वस्थ नागरिक की पौध
तैयार करने के लिए ॥

सोमवार, 8 नवंबर 2010

हँसी का फौआरा


फैशन शो में धक्के से
मैडम गिरी उच्चके से
हाई -हिल की टूट गई कील
होने लगा बहुत बैड फिल ॥
गिरा रैम्प पर बैग उछलकर
बोल पड़े सब .....
चलिए संभलकर ॥
हाई हिल की सैंडल पहन
अब ना चलिएगा दुबारा
नहीं तो आप बनती रहेगी
हँसी का फौआरा ॥

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

डर का नाम शंकर तो नहीं ....


एक अदृश्य चुम्बकीय शक्ति
निकलती है ...
जटाओ से
गले में लिपटे सर्पों से
शरीर में लगे भभूत से
या फिर
कंठ पर रुके हलाहल से ॥

रावण भी पूजता था उन्हें
लंका जाने का निमंत्रण
स्वीकारा उन्होंने/इस शर्त के साथ
बीच में कहीं मत रखना
देवघर के पास
रावण को लघुशंका लग गया
और तब से वे
देवघर वासी हो गए ।

बड़ा दानी है वह
सबसे बड़ा परमार्थी
जो मांगो /वही मिलेगा
मगर सोच समझ कर मांगो
पुत्र मोह की लालच में
सालों पूजा एक भक्त ने
शौच से आते वक़्त
क्रुद्ध हो गया भक्त
लोटा से मार बैठा शिवलिंग पर
लगातार चार पुत्र प्राप्त हुआ
मगर सब के सब रावण ॥

नहीं मांगता वह
सोने का सिक्का /लड्डू /मिठाइयां
खुश हो जाता
बेलपत्र /धथुरा /भांग से ॥

कहते है ....
ब्रम्हा जनक है
विष्णु पालक है
और शंकर संहारकर्ता
अब प्रेम से
या डर से
शंकर सब जगह है

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

जागते रहो

समय ......
एक ऐसी गाडी है
जिसमे ब्रेक नहीं होता
एसिलेटर और क्लच भी नहीं
अपनी गैराज में
बंद नहीं कर सकते आप ॥

हमें चलना है
इसी गाडी के साथ -साथ
कैसे चलेगे हम
सिर्फ ....एक ही उपाय है
जागते रहो
और देखते रहो लक्ष्य को
क्योकि
जो सोया ,सो खोया
जो जागा ,सो पाया ॥

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

शुभ दीपावली

तम के कुपित घोसले में
सजी दीपों की लड़ी
शुभ दीपावली

लक्ष्मी -गणेश का गुंजा नारा
दरिद्रों में मची खलबली
शुभ दीपावली



घर -घर के दरवाजे पर
मुस्कुरा रही रंगोली
शुभ दीपावली

बाग़ में हर फूल खिले है
हर्षित अलि-अलि
शुभ दीपावली

सोमवार, 1 नवंबर 2010

भाषण

भाषण .....
मैं बोलूंगा
आप सुनेगे
मैं मंच पर रहूंगा
आपसे आखें चार जो करनी है ॥

आयोजकों ने दिया है
एक खास विषय
आप सभी आये है
खास विषय पर सुनने ॥

मगर ....
मैं लोकतंत्र का नेता हूँ
कुछ भी बोलूंगा
आपको सुनना होगा
अपनी सरकार की बड़ाई
और विपक्ष की धुलाई
बीच में टोकने का मतलब
मेरी बेईज्जती ॥

नेता का भाषण
हसुआ के विवाह में
खुरपा का गीत ॥

मेरे बारे में