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बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

फूल और मैं

मैंने फूलों को तोड़ा
सुखा दिया रखकर उसे
किताबों के दो पन्नों के बीच
फिर पंखुड़ी -पंखुड़ी अलग कर दी
फिर पैरो से कुचल दिया ॥
मगर ....
खुशबू नहीं मरी ॥

एक मैं हूँ ..दोस्तों
किसी इंसान के
ज़बान से शब्द फिसले क्या
तूफ़ान मचा देता हूँ
तुरंत अपने को
हैवान बना लेता हूँ ॥

24 टिप्‍पणियां:

  1. pushp aur insaani vyavahaar ke antar ko khub likha hai...
    ek hanste hanste mit jata hai aur ek mitane ko utaaru hai...
    sundar rachna!

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  2. Baban ji phool aur insaan mein yahi to fark hai! Insaan swarthi hai, jajbaat se khelta hai, koi baat jo dil ko acchi na lage to ise woh pratishtha ka prashn bana leta hai aur pratishodh ke swaroop mein mukhar ho uthta hai! Jabki phool ko chahe aap apne pairon se raund do, chahe haathon se masal do chahe pankhudi tod kar pustak mein rakh leejiye par yah apne jajbaat nahin chodta, apni saundhi sugandh se poora vatavaran sugandhit kar deta hai!

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  3. अनिल भाई @...एक स्वस्थ और सार्थक टिप्पणी के लिए आपका नमन करता हूँ ...

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  4. पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है

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  5. अहंकार और घमंड को जितना आसान नहीं होता, इससे लड़ने का नाम ही जेहाद और धर्मयुद्ध है.

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  6. " फुलों से नित हसना सिखो..भोरों से नित गाना..हरि भरि डालियों से सिखो नित मिलना ओर मिलाना.." भ्राता श्री ईश्वर ने हमे प्रकृति के माध्यम से बहुत कुछ सिखने ओर समझने के लिए दिया है परन्तु हम ईन्सान इससे कहाँ कुछ प्रेरणा ले पाते हैं, हम तो अपने ही स्वार्थ और अहंकार मे चुर रहते हैं, दुसरो का भला क्या अपना भी भला नहि कर पाते है! आपकि रचनाये एक से बढ़कर एक और कुछ न कुछ संदेश दे जाती है! बहुत बहुत बधाई भाई साहब !

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  7. बबन जी.........हम फूल नहीं ना...और ना ही बनने की कोशिश करते हैं ......इसलिए फूलके गुण आना......शायद एक भ्रम ही रहेगा ......इसलिए जैसे आपने इंसान के गुण (अवगुण) गिनाये ...वो स्वाभाविक ही हैं ......अच्छी रचना आपकी बबन जी....

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  8. जी नरेश भाई ..गुण -और अवगुणों की खान है मनुष्य ...चाहे कामुक प्रवृति हो ..या मानवीय गुण ...

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  9. सही कहा फूलों से जीने की सीख लेनी चाहिए।

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  10. yehi insaan ki mool pravrati hai ... aapne bahut achchhe shabdon mein insaan aur prakriti ke antar ko dikhaya hai ....

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  11. बबन जी ,फूल शब्द सुनते ही चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है .......फूल का नाम आते ही, उसकी सुन्दरता, खुशबू ,विभिन्न रंग दिमाग में आ जाते हैं. फूल का स्वाभाव अत्यंत कोमल है.....वो केवल देना जानता है..........लेना नहीं. उसके विपरीत हम में से कुछ मनुष्य , मनुष्यता के नाम पर कलंक साबित होते हैं. इश्वर ने मनुष्य को धरती पर प्रेम बांटने भेजा, परन्तु अपने अहम् के कारन वो राक्षस बन बैठा.आपकी कविता साफ़ दर्शाती है की हम मानवों की सोच कितनी छोटी है. सुन्दर रचना!!!!

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  12. बबनजी,
    आपकी रचना सुबह से खोल के रक्खा हूँ... कई बार पढ़ लिया... कमेन्ट लिखने कि कई बार चेष्टा भी की...
    पर आपकी रचना पर कमेन्ट लिखने के लिये शब्द नहीं मिले... इतनी जबरदस्त रचना पर वाकई कोई कमेन्ट लिखा भी नहीं जा सकता...
    इस रचना को पढ़ने के बाद तो स्वयं को आईने में देखने की जरूरत है... एक और काम करना होगा... इस रचना का एक प्रिंट ले कर उसे फ्रेम करवा कर अपने घर की दीवार पे लगा लेना होगा - रोज पढ़ने के लिये...
    आपको, आपकी सोच को और आपकी लिखावट को बहुत बहुत बधाइयां...

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  13. Babn Bhai....Bahut sunder rachna....hum prakirti se kitna kuch seekh sakte hain iska hamen khud andaza nahi lekin hum hamesha uski taraf se aankh band kiye rehte.....KHUSHBU..kabhi nahi marti theek isi tarha insan mar jata hai lekin uske kiye achche ya bure kaam marne ke baad bhi zinda rehte hain lekin hum iss dusri aur asli zindigi ke liye kuch nahi karte...!

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  14. phoolon se tum hasna sikho...bhoran se nit gana taru ki jhooki dali se seekho sheesh namana...we should learn from nature......very nice Babbanji

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  15. चंद शब्दों में गहन बात ..किसी और कि वजह से स्वयं को नहीं खोना चाहिए ...अच्छी प्रस्तुति ..

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  16. Bade bhai Shree Baban Ji,aap ne bahut hi acha likha hai...acha inshan hamesa shant rahata hai...chahe kitani bhi paraesaniyo ka samana karana pade...wah aapane sachayi aur imandari rupi mahak ke dwara aap ham tak achayi ki khushbu teta hi rahe ga...Jis tarah phul ka gun hai, tutane aur shukhane ke baad bhi khushbu dena...acha insan ka bhi yahi gun hai...Dhanyavaad.

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  17. फूलों से नित हंसना सीखो
    भौरों से नित गाना
    फल से लदी डालियों से नित
    सीखो शीश झुकाना।

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  18. बबन जी फूलो का स्वभाव ही येसा...बहुत खूब
    http://merachintan.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html

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  19. बहुत ही छोटी पर बहुत ही बड़ी बात कही है आपने बबन भाई|

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