पढ़ा था .....
नहीं निकलती घी
सीधी अंगुली से
कोशिश मैंने भी की
असफल रहा ॥
मैंने भी खाई थी कसम
घी निकालूँगा
बिना अंगुली टेढ़ी किये ही
और फिर
चम्मच ने काम आसान कर दिया ॥
क्या आप से भी घी नहीं निकल रही
हर जगह मिलते है
ऐसे चम्मच
हर काम करने में सक्षम
जैसा काम ,वैसा दाम ॥
बबन भाई, बिना टेढ़ी उंगली के घी नहीं निकलता. आपने जिस चम्मच का सहारा लिया, उससे भी घी इसीलिये निकला क्योंकि वह टेढ़ा था.
जवाब देंहटाएंBaban bhai Ghee nikalne ke liye anguli ho ya chammach tedha karna hi padta hai. Vaise yahan sandarbh bade chammachon ka bhi diya ja sakta hai. Bharat mein to yah ek hagh profile wala business ho gaya hai. Jitne tedhe kaam utne hi mahnge chamche. So bhaiya yah dhandha bhi bahut phal phool raha hai, chamchon ka bhi aur chamche rakhne wale logon ka bhi!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही सुझाया है आपने! सुन्दर रचना! आपकी तरह बताने वाला मिलता रहे तो हम देश में घी की फैक्ट्री लगा लेंगे. ARSS के बैनर तले.
जवाब देंहटाएंvyavastha par chot karti rachna....
जवाब देंहटाएंchamchon ka bolbala to hai hi!!!!!!
prateekatmak roop mein badi badi baatein aasani se kah jate hain aap!
shubhkamnayen!
Bilkul seedhi sachchi baat
जवाब देंहटाएंBabanji aajke parivesh me chammach sabse upyogi vastu hai, pahle log hath se khana khate the, lekin aaj Chammach ka jamana hai, hath se khane wale ko phoohad mana jaata hai, aur Ghee nikalne ke liye bhi ungli tedi karne ki jarurat nhi hai, Chammach ko thoda sa teda karne se kaam chal jaata hai, aur aajkal Chammcho ke jariye to aap chhote bade sab kaam asaani se kara sakte hai, kahne ki jarurat nhi hai, to jai ho Chammach ki mahima ki....................
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंaapke soch ko salam!!
sadhe hue sabdo me aaj ki jindagi ko batane ke liye!!
chammach sach me upyogi hai.........chamcho ki tarah!!
चमचों पर अच्छी चोट की है ...
जवाब देंहटाएंचम्मच की उपयोगिता तो है ही . आधुनिक भारत में न चम्मच के बिना काम चलता है , और न चम्मचो के बिना .
जवाब देंहटाएंस्टील का चम्मच हो या हाड मांस का चमचा, हमेशा ही कारगर हुआ करता है अब ये कम से कम उन लोगों या चीजों से तो बेहतर ही है जो नाकारे हैं किसी काम नहीं आते!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
आपने ने तो व्याख्या ही बदल दी :)
जवाब देंहटाएंचमच का एक और बेहतरीन उपयोग ... बधाई
सही लिखा आपने बबन जी , न चाहते हुए भी हमें चम्मच का सहारा लेना पड़ता है, क्यूंकि अगर काम अटक जाए तो नुकसान ज्यादा होता है .या तो चम्मच का सहारा होना चाहिए या फिर चमचों का.....बिना इसके आज के दिन गुजारा आम आदमी का तो नहीं है!!!!
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने भाई साहब जी! बिना चमचे के काम निकालना बड़ा ही मुस्किल है! पर ये है कौन? अब तो इसके बिना लोग खुद को ही असहाय समझने लगे हैं! काम कराने से पहले ही ध्यान आ जाता है कि "काश कोई जान पहचान निकल आता तो काम आसान हो जाता"! ये जान पहचान वाले कोई और नहि,हमारे अपने ही हैं जो चमचे का काम करते हैं!
जवाब देंहटाएंमैंने भी खाई थी कसम
जवाब देंहटाएंघी निकालूँगा
बिना अंगुली टेढ़ी किये ही
और फिर
चम्मच ने काम आसान कर दिया ॥
Bahuit badhiya ye engineer babu......
बबन जी.......जिस देश में आज .भगवान के जल्द दर्शन करने के लिए या तो.....विशेष सेवा शुल्क दे कर या वैसे ही किसी पंडित को पैसे दे कर दर्शन किये जाते हो...............फिर आम आदमी से मिलने के लिए और उस से अपना काम करवाने के लिए....क्यों नहीं ......ऐसा होगा......वैसे भी हम मंदिर जाते हैं तो कहते हैं कि..........भगवान मेरा यह काम करवा दो.मै आपकी यह चीज चढाऊंगा..........फिर कोई भी समझ सकता हैं कि..........सीधी ऊँगली से घी कभी नहीं निकलेगा...........क्योकि हमारी मानसिकता उस तरह कि हो चुकी हैं.........इसलिए आपके चम्मच .......की.............हर जगह जरूरत हैं ...........बहुत बढिया रचना आपकी बबन जी
जवाब देंहटाएंWah Bhai Pandey Ji kya wyang hai. Very Nice.
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यंग्य|
जवाब देंहटाएंShree Baban bhai Ji, Aaj jis tarah....har ek jagah.."CHAMMA GIRI YA GHUSKHORI" chal rahi hai. Is par aap ki ye rachana bahut hi achhi hai...aap ke rachanaye padhakar aap ke bare me kalpna ki ja sakti ki ki aap dwara rachit har ek rachana achi hi hogi...Samaj me baad rahe Bhrashtachar ke upar is rachana ke liye aap ko Hardik Dhanyavaad..
जवाब देंहटाएंmaine bhi kahi chamache aajmaae,
जवाब देंहटाएंsaare nikamme bechaare,
mere dost ne kaha,
kyon firate ho maare maare,
sansad kee galiyon men
mil jaaenge folding chamche saare. shubh kaamanaon ke saath
चमचागिरी पर कटाक्ष करती आपकी रचना मन को गुदगुदा जाती है..आदरणीय बबन सर ये तो अंग्रेजों के ज़माने की औलादों के शौक हैं..ये ऊंचे लोग कांटे,छुरी,चम्मचों से डायनिंग टेबल पर भोजन करने वाले यदि ज़मीन पर आलती-पालती मार कर हाथ से भोजन करना सीख जाएँ तो इस देश में "राम-राज्य" आ जाये....
जवाब देंहटाएंबन जी ,चम्मचे ही आजकल गुणवत्ता के वकील हैं ....आपकी व्यंग्यात्मक रचना के लिए बधाई ....!
जवाब देंहटाएंबबन भाई साहिब ..........आप ने जो आज के जमाने में चमचों के महत्व पर व्यंग किया है वह सर्वथा लागू होता है ........क्योंकि चम्च्गागिरी इतनी व्याप्त बिमारी है जिसे हम अनदेखा भी नहीं कर सकते और हजम करना हि पड़ता है .........चाहे-अनचाहे
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