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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

बबूल और मैं

मैं एक पौधा था
नर्म कोमल
टहनियाँ थी मेरी
लोग आते
तोड़ लेते मेरी टहनियाँ
बना
लेते दातून
जीना मुश्किल था मेरे लिए

मेरे बगल में
कांटो से भरा एक बबूल भी था
उसने कहा
मर जाओगे जल्द ही
जीना है तो
पैदा कर लो
अपनी टहनियों में कांटे

सच में .....
जब से मैंने कांटों की
चादर ओढ़ी
बड़ा शकून है
मगर क्या
ये अच्छी बात है ?

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. दुनिया की वास्तविक सच्चाई को बयां करती हैं ये पंक्तियाँ . मेरा अपना अनुभव भी ऐसा ही है. यथार्थ के चित्रण के चितेरे हैं आप

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  3. सच में .....
    जब से मैंने कांटों की
    चादर ओढ़ी
    बड़ा शकून है|

    क्या बात है! कहीं पढ़ा था कि:

    दर्द से कुछ इस तरह से हो गया रिश्ता मेरा,
    अब तो दर्द होता है दर्द के न होने से!

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  4. बहुत ज्यादा अच्छा होना भी ठीक नहीं ...ज़िंदगी के यथार्थ को बताती अच्छी रचना

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  5. Achchi baat to bilkul bhi nahi hai , lekin in kaanton se suraksha to milti hi hai .... aajkal achcha hone ke nuksaan zyada hain ....vaise achcha admi bhi aadat se majboor hota hai .....

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  6. mit jana shreshkar hai kaantein ugane se....
    lekin aaj ke sandarbh mein shayad yah vyavhaarik nahi!
    sundar rachna!

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  7. बबनजी,
    "कांटो की चादर" जिन्होंने ओढ़ रक्खी है, उन्हें उतारने की सलाह मिले... और जो नहीं ओढ़ रक्खे हैं उन्हें अगर ओढ़ने की सलाह दें... तो बात थोड़ी अटपटी लगती है...

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  8. बब्बन जी -कविता बड़ी अच्छी भावना प्रद है."मगर क्या ये अच्छी
    बात है "नहीं ये तो अच्छा नहीं ,मगर अपना आस्तित्व बचाना
    है तो कई बार काँटों की बाड़ भी लगानी पड़ती है,कांटें भी उगने पड़ते हैं.

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  9. बहूत भावात्मक ! एक दातून तोड़ने वालों को पञ्च पेंड लगाने और बेटे की तरह पलने की सलाह हम देंगे .

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  10. यूँ ही लिखते रहें ..
    बहुत ही सुन्दर...

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  11. आज के ज़माने मे फूल के साथ खार होने भी जरूरी हैं………………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  12. कविता में गहरा संदेश छुपा हुआ है। हार्दिक बधाई।

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  13. सचमुच आज के युग में जीवित रहने के लिए लोग कांटे ओढने को मजबूर हो गए हैं !!

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  14. अगर शारीरिक और मानसिक शकुन में से एक का चयन करना हो तो मानसिक शकुन ही जरूरी है, क्यूंकि मन के घाव बहुत गहरे होते है.....जो जल्दी भरते नहीं .वैसे भी
    जो रहीम उत्तम प्रकृति, का कर सकत कुसंग |
    चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग ||
    बबन जी बहुत... ही सुंदर एवं सोचने वाली कविता है......

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  15. बबूल और मैं...yah byangatamk rachana.Sachayi ko vyan kar rahi hai...aap ki yah kavita...sochane wali hai...kya ham sacha rasta chhod de aur kata yani galat rasta apanaye ?...
    Bahi Ji, Ati sundar...bahut hi achi rachana hai...Dhanyavaad

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  16. kisi ke liye achchhi to kisi ke liye buri har baat hoti hai. jeevan ki raksha karne me kaisi burai. aur koi bhi yun kaise le jaa sakta hai jindgi ki mithai????

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