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गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

भगवान् से एक प्रश्न

मनुष्य .....
पत्थरो में तिलक लगा
उसे भगवान् बना देता है
फिर बंद कर देता है
छोटे से कमरे में ॥

प्रभु .....
आप तो कण -कण में है
आपने ही सारी सृष्टि रची
छोटे से कमरे में
आपको तकलीफ नहीं होती प्रभु ।

मनुष्य ने ऐसा क्यों किया
कभी आपने सोचा प्रभु

क्या आपको वह अपनी तरह
निष्ठुर समझाता है
क्या मनुष्य सोचता है
अगर आप स्वछन्द घुमे
तो इंसान की तरह
हो जा सकते है आप भी
पत्थर -दिल ॥

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा पोस्ट !

    ग्राम-चौपाल में पढ़ें...........

    "अनाड़ी ब्लोगर का शतकीय पोस्ट" http://www.ashokbajaj.com/

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  2. Bahut khoob Baban ji Murti pooja per ek sunder kataksh, ek baar bhakto ne Ishwar se kaha ki aap hamare sath rahe, vo bole theek hai, lekin logo ko jara si pareshani hoti vo Ishwar ko bolte, Ishwar ne pareshan hoker socha ki kya jaaye, aur soch vichar karne ke pashchat vo haamare hraday me bas gaye, aur aaj bhi agyani bhakt unhe Mandiro Masjid aur Gurudwaro me khojte hai, jabki Ishwar to hamare hraday me baste hai.....

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  3. भगवान से यह प्रश्न अच्छा है...जो सर्वव्यापी है उसे एक छोटे कमरे में बंद करना नासमझी है..लेकिन क्या किया जाये गिलहरी ने भी सेतुबंध के समय अपने गीले शरीर में रेत लपेट कर समुद्र में डालते समय यह मान बैठी थी कि यदि वह यह कार्य ना करेगी तो न सेतु बनेगा न रावन मरेगा और न असत्य पर सत्य की विजय ही होगी ..मन के भाव हैं भाई करने दीजिये नासमझी ..और आपको भी अटपटा लगे तो जी भर लिखिए ..हम तो हैं न आपके कदरदान ..आपकी बात समझने वाले और आपके प्रयासों की प्रशंसा करने वाले....

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  4. Babban ji, main aapke vichaaron se purntaya sahmat hun. Ishwar to sarvavyapi hai, use murtiyon mein dhoondhna, prachar karna aur tarah ke dikhawe va dhakosle karna bevkoofi hai. Bhagwan ke aadarshon ko apnane va unke vichaaron ka anusaran karne ki aavashyakta hai. Log sirf kaam aur zimmedariyon se door rahne ke liye mandiron mein dikhawe aur rudhiwadita mein zyada leen rahte hain.Agar Insaan karma kare aur bhagwan ke aadarshon ko jeewan mein apnaaye to aadarsh Bharat ki kalpana sakaar ho jaayegi.

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  5. patthar ko bhagwan banane wali shraddha ko naman!!!manushya ke nisthur hote jane par prasn karti rachna....
    samvedansheelta badhe manav samudaye mein...
    suprabhat!!!

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. मंदिर मस्जिद ....... जाना गलत नहीं है; यह खुदा, भगवन ..... को पाने के रास्ते की पहली सीढ़ी है. पर मंदिर मस्जिद.... ही जाते रहना धर्म - मज़हब... के पहली कक्षा में ही पढ़ते रहना या फेल होते रहने जैसा है. वहाँ इश्वर/ अल्लाह/ गुरु / युशु .... का शिर्फ़ प्रतीक होता है असल में वो तो इंसानों, प्रकृति और जीवों के बीच रहते हैं ; जैसा की हमारे कंप्यूटर पर डेस्कटॉप आइकन्स होते हैं असली फाइल हार्ड डिस्क में होता है. प्रकृति, मानवता, जीवों की सेवा करना, सच्चाई और रहम को फैलाना ऊँची कक्षा में पढने जैसा है.

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  8. बबन जी ....इन्सान की क्या ओकात की वो पत्थर में उस को ढाल दे .....को खुद ढलता है ...फिर ये सब्द आप ने भी शायद सुने होंगे .....उस से ऐसी दुआ कर की वो पत्थर का बना भी पिगल जाये ...बस आप ने उस को बनाया है तो उसको वेसे ही पूजा की की जरुरत है ...उसको पिग्लाने के लिये ....हम ...सब से कहते है की वो सुनता नहीं ...पर उस प्रार्थना की जरुरत है जिससे वो पिगल जाये .......मुझ में वो लाना हो गा तो ही वो पत्थर की मुरत सार्थक है ...नहीं तो जहाँ बिठा रखा है वहा ही वो आराम से बैठा है ........अब पिग्लो तो तुम पिग्लो ...................की उसको पिगालना है तो फिर ????????????????????.

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  9. Jaaki Rahi Bhawana Jaisi Prabhu Murat Dekhi Tin Taisi
    Babban Ji, Sabhi apane apane tarike se kuch karne me lage hai aur result bhi karne ke anurup hi milta hai...... aapne ek atyantik dasa ki baat kahi hai jo bilkul hi satya hai ....lekin jo jab samjhega tabhi samajh payega.
    Dhnyabaad

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  10. Sarv pratham mai Bhai Shri Baban Ji ko Pranam karata hun ki aap ne bahut hi rochak vishay par kavita likhi Hai"भगवान् से एक प्रश्न".
    Padane matra se nahi hoga is kavita ka bhav samajhana jaruru hai ki rachanakar aakhir kya kahata hai.Kiya wah MURTI PUJA ka khilaf hai ?ya wah batana chahata hai ki Jo BHAGAVAN ham sabhi ko yani puri duniya ko banaya ushe ham- aap ek chote se band kamare me band nahi kar sakte?
    Wah sarv vyapi hai...sab jagah hai...sab kuch janta hai...sab kuch dekhata hai...is liye SAWADHAN!...sahi raste par chalo, nek kam karo...ye mat socho ki ham use band kamare me band kar diye hai to use bata nai ki ham- aap kiya kar rahe hai...SHRI BABAN BHAI JI, AUR SABHI DOSTO SE AAGRAH HI KI MERE IS COMMENT PAR AAPNI RAY JARUR DE ...IS BLOG PAR..
    dhayawaad bade bhai ji, ati sundar rachana hai...mere shabda kosh me shabda nahi hai ..aap ke is Kavita ke bakhan ke liye...Ma Saraswati aap ke KALAM ko aur shakti den..Aap ko punh Dhanyawaad.
    @ Shri Ghulam Kundanam Sahab ke baato se bhi mai pura sahamat hu...unhe bhi dhanyawaad.

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  11. भाई साहब कविता अच्छी लगी परन्तु एक बात मैं कहना चाहता हुँ ! भगवान के मर्जी के बिना कोई भी कुछ नहीं करता है क्योंकि कहा जाता है कि उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहिं हिलता! शायद उन्हें भी पत्थर मे बास करना या एक कमरे मे रहना अच्छा लगता है! वैसे भी वो वही करते हैं जैसा उनके भक्त चाहते हैं! कहा जाता है कि जब द्रोपदी का चीर हरन हो रहा था तो भगवान श्रीकृष्ण को रहा नहीं गया वो सहायता के लिए आकाश मार्ग से चल पडे!वो हस्तिनापुर पहुने ही वाले थे कि उन्हे द्रोपदी की पुकार सुनाई पडी " हे बासुदेव, हे कृष्ण अब आप ही मेरी रक्षा करो,आप द्वारिकापुरी से कब आओगे" कृष्ण जी और भी ज्यादा व्य़ाकुल हो उठे! परन्तु वो करते क्या? वो फिर से द्वारिकापुरी गए और दुवारा वापस आए...कहने का तात्पर्य ये है कि भक्तों की खुशी मे ही उनकी खुशी है!

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  12. ये तो अपनी अपनी सोच है……………जब वो कण कण मे व्याप्त है तो छोटी सी अल्मारी हो या इंसान का दिल क्या फ़र्क पडता है उसे…………कण तो उन सबसे छोटा होता है मगर वो तो उसमे भी है………………ये सिर्फ़ हमारे भाव हैं और वो भाव मे ही बसता है उसे दुनियादारी से कोई मतलब नही होता।

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  13. utkrisht rachna,ye to hamari soch itni kunthit hai ki hamne unke astitava ko chote se kaere me samet diya hai jo ki sarv jagah vyapat hain

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  14. बबनजी,
    हर व्यक्ति जो भगवान को मानता या पूजता है वो यह जानता है कि भगवान कण कण में व्याप्त हैं... पर वो उन्हें अपने घर के एक कमरे में बंद इसलिये करके रखता है कि या तो वो स्वयं उनके पास रहना चाहता है या फिर वो उन्हें अपने पास रखना चाहता है...
    आपने जो भावनायें अपनी रचना में व्यक्त की हैं वो वाकई मार्मिक हैं...

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  15. भाई जी मनुष्य की श्रधा उसे पत्थर में तिलक लगवाती है, और हमारा अपने अराध्य के प्रति समर्पण उसे घर में निवास देता है.........तो जी आप अगर गलत नहीं तो हम और हमारे जैसे भी सही ही है...............वैसे अच्छी रचना है,,,,,,,,

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  16. Bhai Babban Ji, Na to unke dwaara band karne se bhagwaan kamre mein band ho paaye aur na hi aapki is kavita se vo aazaad ho jaayenge.
    They closed the door to the human being who has no faith in God only because they will see the valuables kept there or they may be feel themselves in disturbing the faith of others and that is why the whole efforts will go in vain.

    God is every where and nobody can harm the Godness but Some people can harm the Goodness is being tried to maintain by that faithful person.

    Faith in God is a journey towards the faith in others but it fully depends on the action from other side. It is not one way system.

    Faith also has many degree. If you ask the way from a stranger and you follow the his reply it does not mean you have full faith in him and thus you can left whole of your property in his custody.

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  17. Babanji, bahut hi sunder rachna hai.bhagwaan patthar ke ho kar bhi kabhi patthar dil nahin ho sakte. Babanji, prabhu ko apne bhakton se kabhi takleef nahin ho sakti agar we unki dil se pooja, archana karte hain to.hume kis prakaar se treat kiya gaya,aisa bhi hum manushya hi sochte hain, prabhu nahin.God is great.

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  18. when man worships God in form of murti ,tree ,stone,or anything ,else ,it's his faith that is reflected,some prefer going to temple ,some believe in meditation,Bhagwan ko to sab pray karte hain tarika alag hai....your approach is commendable...

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  19. भक्ति क्या है यह जो समझ जाए. संत हो जाए.

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  20. kan kan main hai bhagwaan,
    jo kuch hota hai woh bhagwan ki hi marji se hi hota hai, yehi kahate hai aam loog,
    aur aam log band kamare mein pathttar pooja karte hai, yeh bhi sayaad bhagbaan ki hi marji rahi hogi, sayaad...........

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  21. जाकी रही भावना जैसी ..ही बात है.....क्या आपने सुना नहीं कि ...
    दिल में तुझे बिठाके
    करलूँगी बंद मैं आँखें ..
    --- मनुष्य को दिल जैसी चीज़ में बंद किया जा सकता है तो..

    "ईश्वर तेरे दिल में समाया: भी सही है.... तो फिर इतना बड़ा कमरा क्या कम है ईश्वर के लिए वहां ईश्वर क्यों नहीं रह सकता ....
    --जो कण कण में है वो मूरत में भी है.... समझ अरे नादान ....

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