कावं-कावं हो गई जिंदगी
कभी जीवन है धूप
कभी पीपल की छावं
कभी जीवन है झरना
कभी कौवे की कावं-कावं //
कभी निराशा की गली में
थकता है तन-मन
कभी आशा की रोड पर
थकते नहीं हैं पावं //
भागता फिर रहा मैं
रुपयों के पीछे
लगाता हूँ रोज़ अब
खुशियों के दावं //
न फूलों में महक है
न रिश्तों में गंध
पछताता हूँ आज मैं
छोड़कर अपने गावं //
पछताता हूँ आज मैं
जवाब देंहटाएंछोड़कर अपने गावं //
यही सबसे बड़ा सच है आज के जीवन में।
abhi tak ki sabse achchi rachnao me se ek.
जवाब देंहटाएंpratyek pankti aur shabd prasangik hai.
anand aa gaya padh kar.
aapki rachnatamkta se samaj me kavya ko sartha karti huyi kavita hai.
कभी जीवन है धूप
जवाब देंहटाएंकभी पीपल की छावं
कभी जीवन है झरना
कभी कौवे की कावं-कावं //
bahut khoob..... baban bhai...
न फूलों में महक है
जवाब देंहटाएंन रिश्तों में गंध
पछताता हूँ आज मैं
छोड़कर अपने गावं ..
शहरी जीवन की सच्चाई दर्शाती भावपूर्ण रचना...
वाह ! बबन जी
जवाब देंहटाएंशहरी जीवन का सच
इस कविता का तो जवाब नहीं !
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंgaav ki baat hi niraali haae ji ?
जवाब देंहटाएंभागता फिर रहा मैं
जवाब देंहटाएंरुपयों के पीछे
लगाता हूँ रोज़ अब
खुशियों के दावं //
आज के भागदौड़ भरे जीवन का सच यही है.... सुंदर प्रासंगिक भाव लिए कविता
बहुत ही प्यारी रचना है...इतनी बड़ी बातें इतने सीधे-सरल शब्दों में संजोने के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंlife is peaceful in villages only
जवाब देंहटाएंतोहार रचना मन के छु गईल बबन भैया।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंन फूलों में महक है
जवाब देंहटाएंन रिश्तों में गंध
पछताता हूँ आज मैं
छोड़कर अपने गावं ...
waaah bhai ji...shahrikarn ki isee prrda ka shikar main bhi hun...bahut achha laga padhkar !
वाह, बहुत से लोगों के मन के भाव लिख दिए.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
nice
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