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गुरुवार, 19 मई 2011

आगोश


मैं ही नहीं ,आप भी शोक में हैं
मुसीबतें खुदरा में नहीं ,थोक में हैं //

हम भी गरीब हैं ,आप भी मुस्लिफी में है
पैसा तो ,नेता बने हर जोंक में हैं //

सड़कें बन रही ,विकास के नाम पर
इसलिए हर किसान अब जोश में हैं //

सूखे रसबेरी में अब रस भर ही जायेगी
क्योकि वह अब आपके आगोश में है //

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्…………हमेशा की तरह व्यंग्य की धार शानदार है।

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  2. हम भी गरीब हैं ,आप भी मुस्लिफी में है
    पैसा तो ,नेता बने हर जोंक में हैं //

    बहुत खूब व्यंग है

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  3. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  4. In netao ne jina hram kar rakha hai. . . Bahut khub. . .
    Jai hind jai bharat

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  5. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति . दिल की गहराइयों से ओमदे(umde) जज्बात हैं शायद. अति प्रभावी !

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  6. सूखे रसबेरी में अब रस भर ही जायेगी,
    क्यूंकि वह अब आपके आग़ोश में है।

    बेहतरीन ख़यालात का मुज़ाहिरा किया है आपने , बधाई।

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  7. मुसीबतें खुदरा में नहीं ,थोक में हैं...बजा फ़रमाया ...

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  8. भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण... संवेदनशील रचना ...

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  9. सूखे रसबेरी में अब रस भर ही जायेगी
    क्योकि वह अब आपके आगोश में है //

    baat pasand aayee ! :-)

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  10. हम भी गरीब हैं ,आप भी मुस्लिफी में है
    पैसा तो ,नेता बने हर जोंक में हैं //


    bahut khoob likha hai ...!!

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  11. बहुत तीखा व्यंग .... बहुत सुंदर रचना .....

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  12. बहुत सटीक व्यंग..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  13. बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
    बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
    पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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  14. बहुत ही सुन्दर लिखा है....बेहतरीन!

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  15. Babbabji; khoob! aap muflisi kehna chah rahe hain?( muslifi maine abhi smjha nahin)

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  16. मुसीबतें खुदरा में नहीं ,थोक में हैं //

    पैसा तो ,नेता बने हर जोंक में हैं //....Babbanji chotdar sa..ras.

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