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बुधवार, 23 मई 2012

आग उगल रही आकाश

( बाल कविता लिखना भी आसन नहीं  होता, मैंने एक प्रयास किया है ) 

तप  रही है  सारी  धरती  
आग उगल रही आकाश //

 क्या पीयेगें ,   वन के प्राणी 
कहाँ टिकेगें , सारे  नभचर 
सिकुड़ गयी है पेट सभी की 
सूख गयी है अब सारी  घास //

सूख  गए सब ताल- तल्लैया 
और मर गयी मछली   रानी 
दादा-दादी हैं सब लथ -पथ
अब मैं जाऊ किसके  पास //

मंगलवार, 15 मई 2012

पहचान

एक औरत है 
जिसके 
हाथों की अकडन 
घुटनों का दर्द 
और चहरे की झुरिय्याँ 
 बढ़ जाती है , साल-दर-साल 
समतल जमीन पर 
उसके चलने का ढंग 
मानो पहाड़ चढ़ती महिला 
एक लाठी के संग //

पहचाना आपने 
वह मेरी माँ है //

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