क्या गीत लिखू
मेरे मीत
आँचल सरक रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥
आकुल मन
व्याकुल है
भींगे उर
भींगे बदन
मौसम बदल रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥
मौन निमंत्रण तेरे आंखों की
गर्माहट तेरे सांसों की
अंग -अंग सिहर रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥
आओ , चलें
खेलें रति -क्रिया
संगम हो जाए तन -तन का
सावन बरस रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥
i like it
जवाब देंहटाएंgood one... get sensation...
जवाब देंहटाएंbahut hi achchha likha hai....
जवाब देंहटाएंkamuk hai par sundar rachna hai
जवाब देंहटाएंयौन रतिरागात्मकता का उत्थान
जवाब देंहटाएंमौन निमंत्रण तेरे आंखों की, गर्माहट तेरे सांसों की
जवाब देंहटाएंअंग -अंग सिहर रहा है..........संगम हो जाए तन -तन का
सावन बरस रहा है..........वाह वाह , मद मस्त कविता !
आभार
हटाएंमौन निमंत्रण तेरे आंखों की
जवाब देंहटाएंगर्माहट तेरे सांसों की
kay baat .. tasbeer ke saath sabodo ka sayunjhan dekhte hi bantaa hai ..
Very Nice blog
जवाब देंहटाएंPost your free Classified
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भाव तो अच्छे हैं व्याकरण ?
जवाब देंहटाएंश्रृंगार रस से प्लावित अबिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
this is called stunning poetry....
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