followers

मंगलवार, 1 जून 2010

अन्दर की चिंगारी को खोजो

मैं
समुद्र की उन लहरों की तरह नहीं
जो बार -बार गिरती है / उठती है
और
किनारे तक आते - आते
दम तोड़ देती है

मैं
उन घोड़ो की तरह भी नहीं
जिसे
चश्मा लगा देने पर
सुखी घास भी
हरी दूब समझ खा लेते हैं


मैं
उन दिहाड़ी मजदूरों की तरह भी नहीं
जो १०० रुपया और एक पेट खाना पर
बुला लिए जाते है ....
राजनेताओ की रैलियो में
भीड़ जुटाने के लिए

मैं तो चिंगारी हु मेरे दोस्त !!
सबके दिल में रहता हु
ओस की एक बूंद .......
मेरी इहलीला समाप्त कर सकती है
या
हवा की तनिक सी सिहरन
मुझे अंगारे बना सकती है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरे बारे में