(एक मजदूर की सोच )
ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु
जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥
ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू
माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥
जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू
जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥
आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके
चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥
ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु
जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥
ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू
माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥
जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू
जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥
आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके
चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥
Bahut khoobsurat Rachana Er. Baban ji
जवाब देंहटाएंDhananajay Mishra
कर्म की ही महानता है और इसी में ही ईश्वरीय अनुभूति का आभास होता है..
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