followers

गुरुवार, 10 जून 2010

हमलोग चोर है

(मित्रो , मैं लगातार मानव -मूल्यों में हो हरास के ऊपर लिखते जा रहा हू , प्रेम सम्बन्धी कविताये बनाना मेरे लिए कठिन कार्य है ...प्रस्तुत है एक और कविता ...आशा है आपका समर्थन मिलता रहेगा ॥)

चीर चुराना (चीर -हरण ) तो
हम महाभारत काल से जानते है ॥

बिजली की चोरी
मेरा शगल है ॥

इन्कम -टैक्स की चोरी
आम बात है ॥

बनिए द्वारा तौल की चोरी में
हर्ज़ क्या है ॥

परीछा में चोरी
लड़के -लडकियों का हक है ॥

रचनाये चुराना
कवि-लेखको की पुराणी आदत है ॥

भारतीय संगीतकार
पाश्चात्य संगीत चुराते है ॥

देकेदार और इंजिनीअर
सीमेंट चुराते है ॥

नौकरी और आरछन में
लाभ के लिए जाति चुराते है ॥

नेताओ के कहने पर
हम वोट चुराते है ॥

माता -पिता द्वारा
किये गए उपकारो का
हम ऋण चुराते है ॥

मित्रो से पैसे लेकर
आँखे चुराना
कोई नयी बात नहीं ॥

कहते है ...
कुछ लोग
आँखों से काजल चुरा लेते है ॥

अब तो हम -----
मित्रो के साथ बैठ
प्यार और हँसी चुराते है ॥

दांपत्य जीवन को दमतोड़ो जीवन
में बदल
दुल्हन का श्रृंगार चुराते है ॥
-------------बबन पाण्डेय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरे बारे में