(मित्रो , मैं लगातार मानव -मूल्यों में हो हरास के ऊपर लिखते जा रहा हू , प्रेम सम्बन्धी कविताये बनाना मेरे लिए कठिन कार्य है ...प्रस्तुत है एक और कविता ...आशा है आपका समर्थन मिलता रहेगा ॥)
चीर चुराना (चीर -हरण ) तो
हम महाभारत काल से जानते है ॥
बिजली की चोरी
मेरा शगल है ॥
इन्कम -टैक्स की चोरी
आम बात है ॥
बनिए द्वारा तौल की चोरी में
हर्ज़ क्या है ॥
परीछा में चोरी
लड़के -लडकियों का हक है ॥
रचनाये चुराना
कवि-लेखको की पुराणी आदत है ॥
भारतीय संगीतकार
पाश्चात्य संगीत चुराते है ॥
देकेदार और इंजिनीअर
सीमेंट चुराते है ॥
नौकरी और आरछन में
लाभ के लिए जाति चुराते है ॥
नेताओ के कहने पर
हम वोट चुराते है ॥
माता -पिता द्वारा
किये गए उपकारो का
हम ऋण चुराते है ॥
मित्रो से पैसे लेकर
आँखे चुराना
कोई नयी बात नहीं ॥
कहते है ...
कुछ लोग
आँखों से काजल चुरा लेते है ॥
अब तो हम -----
मित्रो के साथ बैठ
प्यार और हँसी चुराते है ॥
दांपत्य जीवन को दमतोड़ो जीवन
में बदल
दुल्हन का श्रृंगार चुराते है ॥
-------------बबन पाण्डेय
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