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शुक्रवार, 18 जून 2010

माँ ! तुम यहीं कहीं हो

माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥

आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई

मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥

ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय

12 टिप्‍पणियां:

  1. मैं भी सुवह उठकर सबसे पहले धरती माता को प्रनाम करता हुँ तभी उनकी गोद मे पैर रखता हुँ ! सच ही कहा है आपने,शायद इसी बहाने हम अपने पुर्वजों को याद कर लेते हैं !

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  2. बबन जी, आपकी कविता दिल को छु गई. माँ हमेशा हमारे पास है, उनका आशीर्वाद हमारे साथ है, इसी वोश्वास के कारण तो हम हमेशा आगे बढ़ने को प्रेरित होते हैं.

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  3. Babanji ek bahut hi khoobsurat rachna matr prem se out prot, Ma vo hai jo bina kisi swarth ke apne bacchon per apna sampurn sneh udel deti hai, unke liye apna jeevan home ker deti hai, tyag aur prem ki sakshat mirti hoti hai ma.........isiliye subah uthker dharti mata ke charan sparsh karke ham manate hai ki hey ma apne bacchon ko jeevan me aane wali kathinaio se ladne aur aage badne ki shakti pradaan karo.......

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  4. बबनजी,
    माँ के बिना ना तो जीवन का आरम्भ ही हो सकता है और ना ही जीवन का निर्वाह...
    या फिर सीधे शब्दों में माँ नहीं तो जीवन नहीं...

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  5. Sri Baban Bhai Ji, "Ma ke bina Jina bhi kya jina hai" मैं सुबह उठकर
    धरती को प्रणाम करता हू
    इसे चन्दन समझ
    माथे पर तिलक लगाता हू ॥
    bahut hi achi kavita hai.
    Bhai Ji, mai to bhagawan se pratha karata hun ki jab-jab janm lu meri Ma hi meri Ma ho.
    Aaj mai jo kuch bhi hu Ma ke badaulat hi hun..is ati sundar rachana ke liye...badayi...

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  6. आदरणीय बबन सर, सर्वप्रथम आदर्श पुत्र गणपति की वंदना करते हुए उनसे प्रार्थना करूँगा कि सर्वशक्तिमान माँ की छत्र-छाया हम सब पर सदैव बनी रहे ..ईश्वर को भी जब इस संसार में जन्म लेना होता है तो ९ महीने अपने गर्भ में खून से सींचने वाली एक स्त्री रुपी माँ ही प्रभु को अवतरित करती है..कौन पुरुष माँ के दूध का क़र्ज़ चुका पाया है..स्त्रियाँ फिर भी जीवन पर्यंत अपनी माँ की सेवा करती हैं जिनसे हमें शुद्ध मातृभक्ति सीखनी चाहिए..पुनः माँ के चरण कमल की वंदना करते हुए..ॐ जय माँ

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  7. चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जर थल में,

    स्वच्छ चांदनी बिछी हुई थी अवनि और अंबर तल में!

    प्रिय बबन भाई आपने हमें पंचवटी की याद दिला दी!

    मर्त्यलोक मालिन्य मेटने स्वामी संग जो आयी हैं,

    तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटी आज अपनायी है।

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