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गुरुवार, 10 जून 2010

आँखे बोलती है


जिन आँखों में देखा था
प्यार का सागर
उसी में तलाक का तूफान देख
हैरान है आँखे ॥

जिन आँखों में देखा था
विस्वास का दरिया
उसी में बेरुखी देख
परेशान है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखी थी
सच की किताब
उसी में झूठ का पुलिंदा देख
बेजुवान है आँखे ॥

घर लौट आओ , मेरे दोस्त
जंगलो में अब बहुत हो चूका
माँ का बेटे के वियोग में
लहू -लुहान है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखे थे
घूँघट में चेहरा
नंगे हुस्न की तारीफ़ का
तमाशाबीन है आँखे ॥

जिन आँखों ने देखी थी
अमन -चैन की बगिया
खून की नदियां देख
गमगीन है आँखे ॥

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सारगर्भित अर्थपूर्ण प्रस्तुति है बब्बन साहब,
    सचमुच गमगीन हैं आँखें .बहुत बधाई.
    "घर लौट आओ मेरे दोस्त,जंगल में अब बहुत हो चुका,
    माँ का बेटे के वियोग में लहू-लुहान हैं आँखें "
    अत्यंत भावपूर्ण आमंत्रण है जो भटके हुए हैं कि
    "आ अब लौट चलें ""आँखें बिछाए हाथ पसारे तुझको
    पुकारे देश तेरा"--आपकी बात पहुंचनी चाहिए .

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  2. बहुत ही भावुक और सारगर्भित अभिव्यक्ति ....
    अंतर्मन को कहीं बहुत गहरे तक नाम कर गयी आपकी रचना ..
    विनोद जी से पूर्णतया सहमत हूँ..बात भीतर तक पहुंचनी ही चाहिए..
    पांडे जी कोटि कोटि नमन !!!

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  3. वाह बहुत खूब बहुत खूब, आंखों की बोली को बड़े ही सुन्‍दर रूप में कविता में पिरोया गया है

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति... आँखों के पैमाने में संसार कि हर चीज नपतुल जाती है. बेजुबानों कि जुबान आँखों के भाव को आपने शब्दों में सार्थकता से पिरोया है | कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें...

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  5. बबन जी........बहुत खूबसूरती से ........आँखों का बहुत सही वर्णन किया आपने.........यह आँखे ही हैं जो सब देखती हैं......आँखे -हैरान भी हैं ,परेशान भी हैं ,बेजुबान भी हैं, लहू-लुहान भी हैं तमाशबीन भी हैं तो समय आने पर ग़मगीन भी हैं..........वाकई भगवान ने बहुत बढिया चीज बनायीं हैं आँखे........

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  6. बबनजी,
    दिल, दिमाग, मस्तिष्क एवं मन को अभिव्यक्त करने की जुबान भी "आंखें" ही होती हैं... और दिल, दिमाग, मस्तिष्क एवं मन को जानने की खिडकी भी "आंखें" ही होती हैं... "आंखें" सिर्फ़ बोलती ही नहीं, बात भी करती हैं...
    आपने अपनी कविता में "आंखों" के जरिये जो संकेत एवं दिया है उसे पढनेवाली हर आंख प्रत्येक संदेश को मस्तिष्क तक अवश्य पहुंचायेगी...

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  7. Aankhe..Tab Aur Ab..kya kya dekh liya!! हैरान, लहू -लुहान, परेशान, बेजुवान, तमाशाबीन, गमगीन ..Sundar rachna.

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  8. aankhen hamre vyaktitv me tula ki bhanti hoti hain jo hamare manobhavon ka mulyankan karti hain .....;"aakhen bolti hain "sundar rachana hai Baban ji .......Abha Dubey

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  9. दिल को छूती रचना! रिश्तों की गहराइयाँ भौतिकता की वजह से कम हो गयी हैं।

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  10. वो निगाहे सलीब है, हम बहुत बदनसीब है.
    आइये आँख मूंद ले, ये नज़ारे बड़े अजीब है. ( दुष्यंत कुमार)
    ( बड़ी ही अच्छी रचना.... आँखे जो है....)

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  11. लाजवाब बब्बन जी. बस "तमाशाबीन" का तुक नहीं मिला.

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  12. बहुत खूब , बेहतरीन रचना भाई जी !!

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  13. aapki lekhnee ki to main kayal hoon baban ji...kyaa sunder likhaa hai aapne,

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  14. बहुत सुन्दर रचना है बबन जी ......
    बहुत से लोगों के जीवन का सच है ये .....




    Anu joshi .....

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