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सोमवार, 7 जून 2010
मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें (भाग -२)
उन सभी दोस्तों को समर्पित ...जिन्होंने आज ..मेरी कविताओ पर लम्बी वहश की है ...आएये दोस्तों ..कुछ मूड फ्रेश कर लीजिये ॥
(८)
फूलों से लदी डाली , जैसे झुक गयी कचनार की
किस -किस को बताऊ , अपनी ब़ाते प्यार की ॥
(९)
हवाओ ने छुआ तुम्हें ,सिहरन मुझे होने लगी
फूल गुले चमन की सूखी, दर्द मुझे होने लगी ॥
(१०)
पूरा जाम नहीं ,अधरों पर लगा
शबनम का एक कतरा काफी है , मेरी मदहोशी के लिए ।
"आ ! मुझ पर बैठ , फूलों ने तितलियों से कहा
अब नहीं उड़ाउगा तुझे ,माफ़ कर मेरी गुस्ताखी के लिए ॥
(११)
पीकर हो गया मदमस्त इतना , तेरे उर का ये प्याला
लालटेन लाने गया था , जुगनू पकड़ कर ले आया
(१२)
बड़ा वबंडर मचा दिया आपने ,जरा सा उनकी जीभ क्या फिसली
जिस कैसेट का भाषण सुना आपने , वो चीज थी ही नकली ॥
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ek se badhkar ek !!
जवाब देंहटाएंहवाओ ने छुआ तुम्हें ,सिहरन मुझे होने लगी
जवाब देंहटाएंफूल गुले चमन की सूखी, दर्द मुझे होने लगी ॥//
waah pandey jee... aapka jawaaz nahi