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शुक्रवार, 11 जून 2010

राजा से रंक तक का सफ़र

सौभाग्यशाली था ...
तैरना जानता था वह
आप देख सकते है ...
उस कृशकाय शरीर को
निष्ठुर सा पड़ा हुआ
भिखारी के भेष जैसा
बाढ़ राहत शिविरों में

उसे याद है ....
गाय के गोबर से
गोइठा ठोकती उसकी माँ
और गौरिये सी फुदकती
उसकी दस की बिटिया
जो शाम को लगाती थी
बापू के थके पैरो में
सरसों तेल की मालिश
इस आश में नहीं ....
कि , व्याह दी जायेगी
किसी खाते -पीते घर में ॥

बीच स्कुल से भाग आती थी
पहुचाने अपने बापू को
माथे पर रख कर
एक कटोरा ......
जिसमे माँ ने बाँधी होती थी
चार मोटी रोटियां
कुछ प्याज़ के टुकड़े
और हरी मिर्च के अंचार
बापू के दोपहर के खाने के लिए ॥

कोसी का प्रबल वेग
सब लील गया
खेतों में अब बालू है ॥

पंजाब के खेतों में
काम करने गया था उसका बेटा
लौटा था वह
अपनी माँ , बहन , दादी ,और बापू को खोजने
ट्रेनों में लदकर
मगर बापू को पहचान लिया उसने
नहीं कर सका अंतिम संस्कार ....
न जाने ...बह कर पहुचने गए वे लोग ॥

"नश्वर है दुनियां
बाढ़ के बाद जाना मैंने ..."
कहता है वह
अब निष्टुर है वह
क्योकि इस तरह का अकेला नहीं है वह ॥

उसके आंसुओ का पोखर
भाप बन कर उड़ चूका है
उसके संवेदनाओ का सागर
समाप्त हो गयी है
भभक कर पेट्रोल की तरह ॥

नहीं लुटाये पैसे उसने
बीयेर बार में
खरीदने कार में
बाज़ार में ॥
राजा से रंक बन चूका था
वह छन में ...
--------------baban pandey

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