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बुधवार, 23 जून 2010

नदी की चाहत और हम

मित्रो, यह कोई कविता नहीं , बल्कि कविता के रूप में नदियों से होने वाले खतरे के प्रति मित्रो को आगाह करती है ..शायद आपको अच्छी लगे ...चुकी मैं इस छेत्र से जुड़ा हू ..तो लिखना मेरा फ़र्ज़ है ..

सर्पीली रूप में बहना
मेरी नियति है ॥
बाँधने की कोशिस में
उग्र हो जाती हू ॥
किनारे का बाँध तोड़
निकल जाना चाहती हू ...
फिर पूछो मत ...
कई सभ्यता /संस्कृतियों के
विनाश का कारण बन जाउगी ॥

बहना चाहती हू
जैसे , उन्मुक्त उड़ना चाहती है
पिंजरे का पंछी ॥

मेरा बहाव मार्ग
संकुचित कर रहा है मनुष्य ॥
पुलों और बांधो को
वेतरतीव बना कर ......
खामियाजा भुगत रहे है ...
पर मानते नहीं ॥
मेरा प्रबल वेग
तोड़ सकता है
टिहरी बाँध और सरदार सरोवर बाँध ॥

भूकंप ला सकती हू मैं ..
बाँध के पीछे ज़मा
अथाह जल -राशि के भार से

मत रोको
स्वतंत्र बहने दो मुझे
मुझे अपनी माँ से मिलना है ॥
----------------baban pandey

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