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मंगलवार, 1 जून 2010
छत पर आई लड़की और मैं
गाँव में
मैं घर की छत पर जाता शाम को
मेरे पीछे पड़ोस की एक लड़की
भी अपने छत पर जाती ॥
कभी वह हाथो से इशारा करती
कभी पलके गिराती / कभी पलकें उठाती
कभी अपना दुपट्टा गिराती
कभी हाथों पकड़ उसे उड़ाती ......
कभी अपने बालों से
अठखेलिया करती .....
कभी मुझे जीभ निकालकर चिढाती
कभी बार -बार आईने में अपना चेहरा देखती ॥
कभी कमर लचकाती ....!!!
मैं चुपचाप देखता रहता
कुछ दिनों तक ऐसा ही चला
फिर मेरे ऊपर
ईट के छोटे -छोटे टुकड़े फेकती
मैंने छत पर जाना बंद कर दिया ॥
फिर कुछ दिनों बाद
एकांत देख मेरा रास्ता रोका ....
कहने लगी
बुध्धू , डरपोक , पढ़ाकू ...
मेरी चिट्टी क्यों नहीं पदी ?
मैंने कहा .....
कौन सी चिट्टी
वही चिट्टी
" जो मैं ईट के छोटे -छोटे टुकडो में
बाँध कर फेकती थी तुम्हे "
वह चिहुक कर बोली ।
मैंने कहा ....
मैंने समझा ...मुझे मार रही हो ॥
अरे ! बुध्धू ....
उस ईट के टुकड़े के साथ ....
कागज में तुम्हारे लिए प्यार का इज़हार था ।
तुम्हारी न हो सकी
मेरी शादी हो रही है ॥
आकर दुल्हन के रूप में देख लेना ॥
(२० साल पहले लिखी गयी रचना )
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bahut der kar di samajhne me..
जवाब देंहटाएंbaato baato me ,main uske ghar chala gaya,,,dulhan rupi us ladki ko dekhne////thodi si udasi uske chehre se jhalki,jaise hi hamare ankhe mili,,//main vochokkasa rah gaya ,,wah kitna sundar hay! e to meri vi ho sakti thi -ek khayal aya,,,, aor anjane me hi ankho se ansu tapak pade,,,,mujhe aor koi vi int ka tukra nahi fekega?-----aapke kavita ka akhri hissa jo mere paas tha --Dhananjay Patra
जवाब देंहटाएंthanks//
जवाब देंहटाएंdhananjay patra ji /
pradeep ji /
बहुत सुन्दर,कोमल,teen age की प्यारी कविता है,
जवाब देंहटाएंप्रेम पत्र को समझना पत्थर की मार,
बुद्धू, डरपोक,पढ़ाकू,प्यार की भाषा में हो गए फेल,
अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत,
bahoot hi umda rachana
जवाब देंहटाएंv nice
जवाब देंहटाएं२० साल पहले वाली आपकी सच्ची घटना लगती है भ्राता श्री !
जवाब देंहटाएंhaan Ajay bhai //
जवाब देंहटाएंSAHI KAHA
जवाब देंहटाएंSAHI KAHA, NADAN HOTE HAI JAB KOI HAMKO CHAHATA HAI,ANJAN HOTE HAI BO JAB DIL UNKO APNA BANANA CHAHATA HAI.
जवाब देंहटाएंkya baat hai babban ji...
जवाब देंहटाएंmast likha aapne...
ye aajkal bhi ho jata hai vaise kabhi kabhi.. :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंNamskar
जवाब देंहटाएंKoi koi bate yaad aakar gudguda si jati hai jise ki aapne kawitao me piro di
bahut hi sundar rachna
kaash kuchh aisa hi sunhara avasar hamen bhi mila hota, Vanchit rah gaye, par jo aaj hai vo bhi kisi se kam nahi. Avasar aate hain kaayi roop men, samjh gaye to bhaagya shaali na samjhe to nadaani.Ab aap hi andaaj lagaye amuk avasar ke vishay men. Kahiye kaisi rahi?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं-----मस्त चित्र है मस्त लिखा है...
जवाब देंहटाएं----हाय....हाय!..अफसोस चोली लंगोटी पहनकर हमें किसी बाला ने क्यों नहीं पत्थर फैंक के मारा ....
Bahut achha
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