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बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

मैंने माँ को बेच दिया

मुझे क्षमा करना
मेरे खेत
मैंने तुम्हें बेच दिया
एक शराब बनाने वाली कंपनी के हाथों
उसका मालिक कह रहा था
करोडो का राजस्व देगा वह सरकार को
भारतीयों को अब दूध नहीं
मदिरा भाने लगा है

दो ही माँ होती है सबकी
एक जन्म देने वाली
और एक अन्न देने वाली
सच पूछो तो मैंने
तुम्हें नहीं
अपनी माँ को बेचा

रम गए है मेरे बच्चे
शहर के चकाचौध में
गाँव नहीं आना चाहते
कहते है ...
आप तो पके आम हो

काश !!
मेरे बच्चे गाँव लौट पाते

19 टिप्‍पणियां:

  1. Baban ji gaon me rahne wale kisaano ke marm ko darshati ek sunder rachna, sachmuch aaj apni mahtavkanshao ke chalte ham apne gaon ko bhool hi gaye hai, shahro ki taraf palayan karna hamari jarurt ban gaya hai, kyuki kheti karne wale kissan ko uski mehnat ka keval kuch partishat hi mil pata hai, aur uski sthithi bilkul is kahavat jaisi hoti hai, ki nanga nahayega kya aur nichodega kya....

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  2. कड़वे यथार्थ को आपने अच्छे शब्द दिए हैं।

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  3. आ अब लौट चले - केवल शब्द ही नज़र आते है आज के प्रक्षेप मे।
    ये वास्त्व मे कडवा सच है बबन जी।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बबन जी,
    कुछ कहे नहीं बन पा रहा है... यथार्थ तो यही है जो आपने लिखा है... गांव से दूर होते ही जा रहे हैं और जब् दूर ही हो गये तो वहा की मिट्टी से भी क्या प्रेम रहा जायेगा... फ़िर उसे "बेच डालो" मानसिकता ही पनपेगी... पर आपने बिल्कुल सही लिखा है कि क्या अपनी "मां" को भी बेच डालोगे...!!! दुर्भाग्य...!!!

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  6. Bhai Ji, aapne Sachayi ko vyakt kiya hai...Is nakara nahi ja sakata... Ye kavita padane ke baad aankho me aasu bhar aaye...Kash aap ki is kavita se hamara samaj kuch sikha pata...Dhanyavaad.

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  7. It's a lovely composition based on reality of our rural India that has been presented very well by Pandey Ji in a very simple lyrics. The farmers of our country are the worst sufferers today because of price inflation and terrorist activities. The power problem is acute. Draught and flood create havoc to them. Few are being reported to have committed suicide because of loan that they are unable to repay. It’s because of these reasons, farmers are forced to migrate from their native villages to cosmopolitan cites in search of employment. Their children are becoming way laid because of severe poverty. Let us hope that the time is not far off when our Union Govt. & all State Govts are bound to realize their shortcomings and work united to arrive at proper remedial measures. Let us hope for the best!

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  8. छोड़ कर संत कुटी को लोग, चले हैं भौतिकता की ओर।
    बन रही है वह निशि दिन मौत, पा रहे हैं सब दंड कठोर।।

    बढ़ रही मन की तृष्णा आज, हृदय को समझ रहे हम यन्त्र।
    तभी तो भटका विश्व समाज, भूल कर शिव का सक्षम मंत्र।।

    रास्ता दिखलायेगा कौन, छोड़ आए हम गुरु का प्यार।
    दिशाएं हैं अब तो सब मौन, हो सकेगा कैसे उद्धार।।

    चले हैं मन की आँखें मूद, शून्य में ज्ञान खोजने लोग।
    पहनकर सन्यासी का वस्त्र, भोगने को उद्यत हैं भोग।।

    नहीं है योग नहीं है भोग, नहीं है सत का सहज विचार।
    छोड़ सत्कर्म पालते रोग, चाहते हैं अनुचित अधिकार।।

    स्वार्थ का घातक हुआ प्रकोप, हो गया दूषित मानव धर्म।
    हुआ जब मानवता का लोप, कौन कर पाएगा सत्कर्म।।

    आज कमजोरी है बस एक, बिक रहा है सबका व्यवहार।
    लुटा ईमान धर्म को लोग, पहनते हैं हीरों का हार।।

    मनों को अधिकृत करके लोभ, दिखाया माया रंग शरीर।
    उसी ने किया हमें बर्बाद, छीन कर अनुपम अमृत क्षीर।।

    हुआ मन इसी तरह परतंत्र, हो रहा है शोषित हर ओर।
    तोड़ पाएगा बेडी कौन, लायेगा आजादी का भोर।।

    मिटाने में मिटने में विश्व, खोजता है जीवन का चैन।
    यही सारे कष्टों का बीज, इसी से दुनिया है बेचैन।।

    सोच लो कैसी है यह भूल, भुला दी मन की सहज बहार।
    छोड़ आधार भूत सत्कर्म, बनाने चले सुखद संसार।।

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  9. koi kya bech sakte hai ish dharti ma ko,jisne sare jahanko samaya hai apne goadme.hum tuksha ho jate hai par ma to ma hoti hai.

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  10. आपने किसानों की वास्तविक व्यथा को व्यक्त किया है ,आभार !

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  11. Baban Ji,
    Bahut sunder, ab humko ann denevali ma ki zarurat nahin,..... kaash aaj ki pidi gaon ke bare mein sochti.

    Surinder Ratti
    Mumbai

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  12. गाँव में सरकार मुलभुत सुविधाए उपलब्ध कराये तो शहर की भीड़ कम हो जाएगी। मैं तो गाँव में ही रहता हूँ और गाँव से ही अपनी सारी गतिविधि चलता हूँ।

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  13. kya baat hai babanji....bahut hi bahdiya likha aapne.....sach mein yahi yatharth hai aaj ka.

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  14. माँ शब्द कानों में मिठास घोल देता है. धरती माँ किसी भी तरह से हमारी अपनी जन्म देते वाली माँ से कम नहीं होती. दोनों का काम जिंदगी भर हमारे लिए अच्छा सोचना ही है......ऐसे में अगर हम अपनी धरती माँ को बेचने का सोचते हैं तो वो हमारा ही दुर्भाग्य है ......शहरों में रहने से गाँव की मिटटी की सुगंध भूलाये नहीं भूलती......हाँ चंद रुपयों का लालच ज़रूर ऐसी प्रेरणा देता है......सोच अपनी है.

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  15. Babbanji,
    Aapki samvednaon ko mahsoos kiya ja sakta hai par iske liye ham sab jimmedar hain, Aaj aap gaon main chahte hue bhi vapas nahin ja pate, security problem ki vajah se. jiske paas paisa hai vo shahar main rahne lagta hai, gaon main bachti hai Bhukhmari aur Bevasi. sansadhan hain nahi, vikas kahan se hoga?

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