श्री बब्बन जी इन पंक्तियों ने मुझे कुछ अजीब द्विविधा में डाल दिया I जहां तक मुझे पता है भूंजा हुआ अनाज ज्यादा फायदे मंद है और ऊर्जावान भी I हो सकता हो मुझे उसकी न्यूट्रीशन फेक्ट्स फिर से देखनी पड़ जाय I पर हाँ ये अडिग सत्य है किस आजकल के रिश्ते आकर्षक तो हैं पर ऊर्जावान न होकर वरन इसकी अपेक्छा ऊर्जा विसर्जन में ज्यादा सहायक होने लग गये हैं I सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए शुभ कामनाएं I
``ये रिश्ते ये नाते कितने अपने अपने``..इन्द्रियों के मोह्पाक्ष में बंधे हम मनुष्यों की कमजोरी को उजागर करती आपकी भुन्झी हुई कविता न भून्झने की प्रेरणा देती है..समाज में आपसी संबंधों में प्रेम और भाईचारे का प्रचार प्रसार हो इसी कामना के साथ..आपका सुभेक्षक
बबन जी...........बहुत सही कहा आपने इस रचना में......कि आज रिश्ते सिर्फ नाम के रिश्ते रह गए हैं...........इनसे कोई उर्जा नही मिलती हैं ...क्योकि इनमे कोई मिठास बची नहीं हैं ....रिश्ता निभाने में चाहे अपना स्वार्थ ना भी हो तब भी दूसरे के लिए भी कुछ नहीं होता ....चाहे दीखने मेंयह कितने भी आकर्षक क्यों ना हो.........
आज हम रिश्ते बनाते है ठीक भुन्जे की तरह जो दिखने में आकर्षक तो हैं मगर उर्जावान नहीं ......वाह जी वाह ...क्या पहलु मैं उतरा है आपने भी इन्सान को ...बबन भाई ....आज तो दिल जीता जी ......अच्छा लगा इन्सान को भूंजा देख कर
Bilkul sahi likha hai aapne Baban Bhaiya, mera facebook ka wall bhi dikhava hai, andar us udgaar ki daria nahi bahati, gande naali ke pani ka panaara bahta hai.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा। http://charchamanch.blogspot.com
बबन जी ..बहुत ही सुन्दर वैचारिक रचना...वास्तव में रिश्तों में उर्जावान होना प्राथमिक है ..नहीं तो मात्र औपचारिक बाह्य सौंदर्य के सामान आकर्षण भर रह जाता है... सादर !!!
प्रिये मित्र, आपकी रचना का भावार्थ तो समझ में आ रहा है जो काफी प्रभावशाली है, परन्तु "भूजा" मानव शरीर के लिए ऊर्जा-प्रदायक नहीं है, इस तथ्य से मैं पूर्व-परिचित नहीं हूँ. जानकारी के उपरान्त ही इस पर स्पष्ट मत व्यक्त कर पाऊँगा. फ़िलहाल भावपूर्ण व मन-रंजक रचना के लिए शुभकामनायें.
बबन भाई ये "भूंजा" का बिम्ब बहुत सटीक और सशक्त चुना है आपने ! क्योंकि बीज अगर भुना हुआ हो तो वो कभी अंकुरित नहीं हो सकता, शायद आज के रिश्ते भी कुछ ऐसे ही हो चले हैं !
बबनजी, वो रिश्ते ही क्या जिनमे मिठास न हो, आपसी प्यार न हो ......बिना स्वार्थ के कोई किसी के काम आ सके, असली रिश्ते तो वही हैं. बाकी सब तो सिर्फ लोकाचार वाली बात है......जब दिखे तब हाय, हेल्लो, नमस्ते........वरना किसी की याद भी नहीं आती!!!!
श्री बब्बन जी इन पंक्तियों ने मुझे कुछ अजीब द्विविधा में डाल दिया I जहां तक मुझे पता है भूंजा हुआ अनाज ज्यादा फायदे मंद है और ऊर्जावान भी I हो सकता हो मुझे उसकी न्यूट्रीशन फेक्ट्स फिर से देखनी पड़ जाय I पर हाँ ये अडिग सत्य है किस आजकल के रिश्ते आकर्षक तो हैं पर ऊर्जावान न होकर वरन इसकी अपेक्छा ऊर्जा विसर्जन में ज्यादा सहायक होने लग गये हैं I सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए शुभ कामनाएं I
जवाब देंहटाएं``ये रिश्ते ये नाते कितने अपने अपने``..इन्द्रियों के मोह्पाक्ष में बंधे हम मनुष्यों की कमजोरी को उजागर करती आपकी भुन्झी हुई कविता न भून्झने की प्रेरणा देती है..समाज में आपसी संबंधों में प्रेम और भाईचारे का प्रचार प्रसार हो इसी कामना के साथ..आपका सुभेक्षक
जवाब देंहटाएंthaki hari aatma ko sfurti pradan karne wale rishton ke lop par sundar likha hai!
जवाब देंहटाएंबबन जी...........बहुत सही कहा आपने इस रचना में......कि आज रिश्ते सिर्फ नाम के रिश्ते रह गए हैं...........इनसे कोई उर्जा नही मिलती हैं ...क्योकि इनमे कोई मिठास बची नहीं हैं ....रिश्ता निभाने में चाहे अपना स्वार्थ ना भी हो तब भी दूसरे के लिए भी कुछ नहीं होता ....चाहे दीखने मेंयह कितने भी आकर्षक क्यों ना हो.........
जवाब देंहटाएंआज हम
जवाब देंहटाएंरिश्ते बनाते है
ठीक भुन्जे की तरह
जो दिखने में
आकर्षक तो हैं
मगर उर्जावान नहीं ......वाह जी वाह ...क्या पहलु मैं उतरा है आपने भी इन्सान को ...बबन भाई ....आज तो दिल जीता जी ......अच्छा लगा इन्सान को भूंजा देख कर
Bilkul sahi likha hai aapne Baban Bhaiya, mera facebook ka wall bhi dikhava hai, andar us udgaar ki daria nahi bahati, gande naali ke pani ka panaara bahta hai.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (1/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
bahut hi badhiya rachna hai baban bhaiya....bhai aapki bhi rachna ka jawab nahi hai...kuch alag type hi hoti hain aapki rachnaen...
जवाब देंहटाएंshubhkamnaye is khubsurat rachna ke liye
बबन जी ..बहुत ही सुन्दर वैचारिक रचना...वास्तव में रिश्तों में उर्जावान होना प्राथमिक है ..नहीं तो मात्र औपचारिक बाह्य सौंदर्य के सामान आकर्षण भर रह जाता है...
जवाब देंहटाएंसादर !!!
बढ़िया दर्शाया.
जवाब देंहटाएंप्रिये मित्र, आपकी रचना का भावार्थ तो समझ में आ रहा है जो काफी प्रभावशाली है, परन्तु "भूजा" मानव शरीर के लिए ऊर्जा-प्रदायक नहीं है, इस तथ्य से मैं पूर्व-परिचित नहीं हूँ. जानकारी के उपरान्त ही इस पर स्पष्ट मत व्यक्त कर पाऊँगा. फ़िलहाल भावपूर्ण व मन-रंजक रचना के लिए शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंBahut badhhiya... aajkal ke rishton ka sundar chitran kiya hai ....
जवाब देंहटाएंबबन भाई ये "भूंजा" का बिम्ब बहुत सटीक और सशक्त चुना है आपने ! क्योंकि बीज अगर भुना हुआ हो तो वो कभी अंकुरित नहीं हो सकता, शायद आज के रिश्ते भी कुछ ऐसे ही हो चले हैं !
जवाब देंहटाएंबबनजी, वो रिश्ते ही क्या जिनमे मिठास न हो, आपसी प्यार न हो ......बिना स्वार्थ के कोई किसी के काम आ सके, असली रिश्ते तो वही हैं. बाकी सब तो सिर्फ लोकाचार वाली बात है......जब दिखे तब हाय, हेल्लो, नमस्ते........वरना किसी की याद भी नहीं आती!!!!
जवाब देंहटाएंबबनजी,
जवाब देंहटाएंअभी तो जमाने में केवल स्वार्थ के रिश्तों की ही जयजयकार है...