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रविवार, 28 नवंबर 2010

मैं राम को वनवास नहीं भेजना चाहता

नहीं नहीं ....
मैं दशरथ नहीं
जो कैकेयी से किये हर वादे
निभाता चलूँगा //

मैं .....
खोखले वादे करता हूँ तुमसे
मुझे
अपने राम को वनवास नहीं भेजना //

क्या हुआ
जो टूट गए
मेरे वादे
अपने दिल को
मोम नहीं
पत्थर बनाओ प्रिय //

18 टिप्‍पणियां:

  1. क्या हुआ
    जो टूट गए
    मेरे वादे
    अपने दिल को
    मोम नहीं
    पत्थर बनाओ प्रिय //
    वाह ! क्या बात कही है।

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  2. मोम नहीं
    पत्थर बनाओ प्रिय //
    wah!! sundar abhiwyakti Baban bhai ......

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  3. Baban ji bahut hi sunder baat kahi hai aapne......main dashrath nahi jo kakayi se kiye her baade ko nibhata chalu, kya hua jo tute gaye mere vaade, apne dil ko mom nahi pathar banao priye......Aaj ke sandharbh me har pal khokhle hote rishto ko darshati rachna.............

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बब्बन जी,एक नई सोच,सही सोच,नई वय्व्हारिक
    दिशा,साधुवाद."अपने ह्रदय को पत्थर बनाओ,टूटे वादों का शोक करो,
    <><><><><>हम वादे नहीं निभाएंगे,प्रिय! राम बनवास नहीं जायेंगे."
    "काश!! आप दसरथ होते,पिता-पुत्र मिलकर रावन वध करते".

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  5. वाह जी ....आप की बात ....सब कुछ बोलती हुई ...गजब का कटाक्ष ......आज लोग वादे ...तोड़ने के लिए ही नाभय करतें है जी ......सुन्दर सोच आज के समाज मैं सच्ची रे रूबरू होती हुई !!!!!!!!!!!!!

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  6. बबन भाईसाहब....बहुत खूब... बड़ा ही सटीक व्यंग्य है....कि वादे तो टूटेंगे...अपने ह्रदय को मोम नहीं पत्थर बनाओ प्रिये...आदत डालो झूठ-फरेब व मिथ्या वचन की...अब कहाँ रहे दशरथ , जो महज एक वचन निभाने को आपने सर्वाधिक प्रिय पुत्र राम को वनवास भेज दें...बहुत उम्दा...

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  7. बबन भाई
    बहुत गहरी बात कही आपने....

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  8. सुन्दर रचना| काश पहले की तरह वचन अब भी निभाए जाते फिर कोई झूठा और फरेबी नही होता|

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  9. बबन भाई साहिब .....बहुत कम शब्दों में एकदम पते की बात की आपने ....//.नहीं नहीं ....
    मैं दशरथ नहीं
    जो कैकेयी से किये हर वादे
    निभाता चलूँगा//........आज के जमाने में वादे तोड़ने के लिए ही किये जाते है .....और साथ ही ..दशरथ बनने की जरूरत भी नहीं ....जो बिना सोचे समझे वचन दे दिया करते थे .......आज स्ट्रोंग बनने की जरूरत है ............

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  10. अति सुन्दर अभिव्यक्ति है बब्बन भाई साहब आपकी......आज के समाज की सच्चाई को आपने अपने अलग अंदाज में पेश किया है......
    बहुत शुभकामनायें ...........

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  11. कविता है या गागर मे सागर ....!! बधाई बबन जी.

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  12. वादों की बात क्या करते हो

    वादे टूटा ही करते है

    कच्चे सपनो के महलों जैसे

    टूट के बिखरा करते हैं

    बिखरी किरमिच को चुनते समय

    जब कंकर चुभते हाथों में

    तब दर्द उभरता सीने में

    और अश्रु बहते आँखों से

    स्वर पीड़ा के मुखरित होते

    जब दर्द पिघलता अनायास

    दिल तो मोम है पिघले गा ही

    टीस उठते है तब पाषण

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  13. बहुत अच्छी रचना है Baban Pandey जी....रचना में कलयुग के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं....इस युग में वादों की महत्ता भी बस इतनी ही है...यथार्थ....!!अति सुंदर....!!

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