सुनो .....
जंगल के जानवरों सुनो
कान खोल कर सुनो
मैं तुम्हारे जैसा
वफादार नहीं //
मैं आदमी हूँ
मौकापरस्त हूँ
ज़रूररत पड़ने पर
तुम्हारे पैर पकडूगा
भुलाबे में मत रहना
अगर स्वार्थ साधने में
ज़रा भी बाधा बने तुम
मरोड़ दूंगा तुम्हारी गर्दन //
भले ही बेशक
तुम मुझे
दधिची की औलाद समझते रहो
जिन्होंने दान कर दी थी अपनी अस्थियाँ //
अंत में ॥
एक राज की बात
मैं जिस थाली में खाता हूँ
उसी में छेद भी करता हूँ
मैं ईश्वर की अनमोल रचना हूँ //
bohat badhiyaa sir. ytharthwaadi rachna.
जवाब देंहटाएंbass sir yahi kaamna hai ke aise he likhte rahiye.
"मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद भी करता हूँ
जवाब देंहटाएंमैं ईश्वर की अनमोल रचना हूँ" ........
वाह क्या व्यंगपूर्ण यथार्थ पंक्तियाँ लिखी हैं भाई. शेयर करने का बहुत-२ शुक्रिया.
Very Good !! Pandit JI !!!
जवाब देंहटाएंJi haan ... aadmi vastav mein janwar se adhik khatarnak hai .....sach mein Ishwar ki anmol rachna !!!!!
जवाब देंहटाएंa nice and realistic poem .....
bilkul pandey jee
जवाब देंहटाएंaaaj kaa aadmee kya hogya hai
oh khud ko nhee janta....
aaap ne jo kilha hai bhut accha hai ..
aap great ho sir jeee
... kyaa baat hai !!!
जवाब देंहटाएंईश्वर की ये अनमोल रचना
जवाब देंहटाएंमौक़ा मिलाने पर
ईश्वर को भी लाली-पाप खिलाने से नहीं चूकती
बहुत बहुत धन्यवाद
good satire
जवाब देंहटाएंmrityulok ka satya....:)
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन व्यंग्य आज के इंसान रूपी खुदा पर्।
जवाब देंहटाएंव्यंग्य के माध्यम से मानव जगत को आइना दिखाती रचना!
जवाब देंहटाएंवाह बबन जी सचमुच आज का इंसान इतना ही मतलब परस्त हो गया है, अपने स्वार्थ सीधी के लिए वो किसी भी हद तक गिर सकता है, हम अपने आप को ईश्वर की बनाई सर्वश्रेष्ट रचना मानते है, लेकिन आज का इंसान जानवरो से भी गया बीता आहो गया है, आज के यथार्थ से रूबरू करती एक बेहतरीन रचना, शुक्रिया शेयर करने के लिए.............
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएं्सर्थक व्यन्ग्य
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, यथार्थ भाव ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, यथार्थ भाव ....
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