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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

घोसला

ओ !... नभचरों
सारा आकाश है तुम्हारा
मगर ....
तुमने बनाया मात्र
एक घोसला
अपने रहने के लिए //

मैं पेशोपेश में पड़ गया हूँ
क्यों दिग्भ्रमित करते हो मुझे
मुझे संतोष नहीं एक घोसले से
आदमी हूँ एक
पर ,घोसला चाहिए अनेक //

34 टिप्‍पणियां:

  1. जी बबन जी आजकल चाह ज्यादा की है लेकिन अपने तक सीमित

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  2. एक आम भारतीय, जिसकी योग्यता भी सिर्फ़ यही है कि वह एक आम भारतीय है जिसे यह नहीं मालूम कि आम से ख़ास बनने के लिए क्या किया जाए फ़िर भी वह आम से ख़ास बनने की कोशिश करता ही रहता है…।

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  3. सारी उम्र दौड़ता रहा..बनाता रहा अनगिनत घोंसले अपनों के लिए..अंत में नसीब न हुआ मुझे खुद अपना सपनों का घोंसला"

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  4. गहरे चिन्तन से उपजा जीवन दर्शन का सुन्दर सूत्र। आदमी सभी जीवों से गया गुजरा है। दिल को छू गयी रचना। धन्यवाद।

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  5. जीवन दर्शन से परिचय कराती एक बेहद भाव मयी रचना………बबन भाई !!!!!……दिल को कहीं गहरे तक छू गयी ।
    REGARDS

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  6. बबन भाई आप छोटी छोटी बातों को पकड़ उनके गहरे मतलब निकल लेते हैं...और यह सत्य भी है...मानव है ही ऐसा...ना उसकी अधिक की चाह ख़त्म होती है ना महत्वकांक्षाएं...बहुत अच्छे भावों की रचना....शुभकामनाएँ...

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    1. मनोज भाई .. सारे रहस्य प्रकृति में ही छिपे है

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  7. ji haan , aadmi ki fitrat hai ye ...use kitna bhi mil jaye , kabhi santosh hi nahin hota ...aur ab to ye bhautikwadi mansikta badhti hi ja rahi hai..ek achchhi yatharthwadi rachna ke liye dhanyawad ....

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  8. ्बस यही तो फ़र्क है आदमी और नभचर मे…………………आदमी की फ़ितरत को बखूबी उकेरा है।

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  9. वाह बबन भाई .....मैनें इस से बढ़िया .... कटाक्ष .....इन दिनों में नहीं देखा है ....बहुत ही सुन्दर आप की ये पक्तियां !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!धन्यवाद जी !!!!!!!!!!!!!!!!

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  10. आदमी की बेंतिहन चाहत को उजागर करती अच्छी अभिव्यक्ति

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  11. बहुत खूब बबन जी....अच्छा कटाक्ष है ......पर आज तो हालत यह है बहुत सारे घोसले चाहिए ........पर घोसले खाली भी नहीं चाहिए...

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  12. सच!संतोष ही नहीं हमें!
    सुन्दर रचना!

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  13. पुरे भरे पुरे घोसले चाहिए नरेश भाई //

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  14. सच कहा .यही तो इंसानी फितरत है.

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  15. बबन जी बहुत खूब इंसान की महतावकांशाओ को दर्शाती एक सुंदर रचना, आज इंसान के पास जो है, वो उसमे खुश और संतुष्ट नही है, उसे और चाहिए, इंसान की मानसिकता के गिरते स्तर का यथार्थ चित्रण...........

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  16. कम शब्दों में बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति....मनुष्य के असंतोष से उपजे महत्वाकांक्षाओं के स्तर को दर्शाती ..आभार

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  17. Waah Baban jee... Mann ki asimit ichhaon ko bahut hi khoobsurti se aapnein shabdon mein baandha... Waah...!!

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  18. बहुत खूब...क्या बात कही है

    मनुष्य की लिप्सा को आपने कुशलतापूर्वक शब्दों में पिरोया है।

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  19. Lagta hai ki
    leo tolstoy wala "how much land does a man need?" kahani sabhi ko padhani hogi.

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  20. Nice poem Babanji, what you have written is the absolute truth of life..............it is we humans only who are full of greed.............never contented with what we have..............we always want more...........so always unhappy ............in turn unsatisfied...........result.............causing unhappiness to everyone around us!!!

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  21. आपकी रचना बहुत अच्छी लगी .. आपकी रचना आज दिनाक ३ दिसंबर को चर्चामंच पर रखी गयी है ... http://charchamanch.blogspot.com

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  22. This is the first time i m reading your blog..Very beautiful creation... .For a moment i went back to my mom's lap and believe me i got recharged .those few seconds gave me an unspeakable strength to move forward onto the right path considering the base ...

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  24. THANKS....@ Chandan Gunjan ....
    wy work got a success// keep reading//

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  25. very true...very nice Insinuation...aadmi ki fidrat hi kuch aisi.... ek nahi anek vo bhi gonsle hindustan hi nahi puri dunai main chahiye...

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  26. बहुत कटु सत्य..लेकिन इतने घोंसले बनाने के बाद भी क्या किसी एक घोंसले में शांति से रहने का सुख नसीब हुआ? बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  27. "आदमी हूँ एक
    पर ,घोसला चाहिए अनेक"

    अंत हीन तृष्णा .. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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