एक आम भारतीय, जिसकी योग्यता भी सिर्फ़ यही है कि वह एक आम भारतीय है जिसे यह नहीं मालूम कि आम से ख़ास बनने के लिए क्या किया जाए फ़िर भी वह आम से ख़ास बनने की कोशिश करता ही रहता है…।
बबन भाई आप छोटी छोटी बातों को पकड़ उनके गहरे मतलब निकल लेते हैं...और यह सत्य भी है...मानव है ही ऐसा...ना उसकी अधिक की चाह ख़त्म होती है ना महत्वकांक्षाएं...बहुत अच्छे भावों की रचना....शुभकामनाएँ...
ji haan , aadmi ki fitrat hai ye ...use kitna bhi mil jaye , kabhi santosh hi nahin hota ...aur ab to ye bhautikwadi mansikta badhti hi ja rahi hai..ek achchhi yatharthwadi rachna ke liye dhanyawad ....
वाह बबन भाई .....मैनें इस से बढ़िया .... कटाक्ष .....इन दिनों में नहीं देखा है ....बहुत ही सुन्दर आप की ये पक्तियां !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!धन्यवाद जी !!!!!!!!!!!!!!!!
बबन जी बहुत खूब इंसान की महतावकांशाओ को दर्शाती एक सुंदर रचना, आज इंसान के पास जो है, वो उसमे खुश और संतुष्ट नही है, उसे और चाहिए, इंसान की मानसिकता के गिरते स्तर का यथार्थ चित्रण...........
Nice poem Babanji, what you have written is the absolute truth of life..............it is we humans only who are full of greed.............never contented with what we have..............we always want more...........so always unhappy ............in turn unsatisfied...........result.............causing unhappiness to everyone around us!!!
This is the first time i m reading your blog..Very beautiful creation... .For a moment i went back to my mom's lap and believe me i got recharged .those few seconds gave me an unspeakable strength to move forward onto the right path considering the base ...
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जी बबन जी आजकल चाह ज्यादा की है लेकिन अपने तक सीमित
जवाब देंहटाएंएक आम भारतीय, जिसकी योग्यता भी सिर्फ़ यही है कि वह एक आम भारतीय है जिसे यह नहीं मालूम कि आम से ख़ास बनने के लिए क्या किया जाए फ़िर भी वह आम से ख़ास बनने की कोशिश करता ही रहता है…।
जवाब देंहटाएंvery nice ,really
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
जवाब देंहटाएंसारी उम्र दौड़ता रहा..बनाता रहा अनगिनत घोंसले अपनों के लिए..अंत में नसीब न हुआ मुझे खुद अपना सपनों का घोंसला"
जवाब देंहटाएंगहरे चिन्तन से उपजा जीवन दर्शन का सुन्दर सूत्र। आदमी सभी जीवों से गया गुजरा है। दिल को छू गयी रचना। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी ... आपका आभार
हटाएंजीवन दर्शन से परिचय कराती एक बेहद भाव मयी रचना………बबन भाई !!!!!……दिल को कहीं गहरे तक छू गयी ।
जवाब देंहटाएंREGARDS
बबन भाई आप छोटी छोटी बातों को पकड़ उनके गहरे मतलब निकल लेते हैं...और यह सत्य भी है...मानव है ही ऐसा...ना उसकी अधिक की चाह ख़त्म होती है ना महत्वकांक्षाएं...बहुत अच्छे भावों की रचना....शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंमनोज भाई .. सारे रहस्य प्रकृति में ही छिपे है
हटाएंji haan , aadmi ki fitrat hai ye ...use kitna bhi mil jaye , kabhi santosh hi nahin hota ...aur ab to ye bhautikwadi mansikta badhti hi ja rahi hai..ek achchhi yatharthwadi rachna ke liye dhanyawad ....
जवाब देंहटाएं्बस यही तो फ़र्क है आदमी और नभचर मे…………………आदमी की फ़ितरत को बखूबी उकेरा है।
जवाब देंहटाएंवाह बबन भाई .....मैनें इस से बढ़िया .... कटाक्ष .....इन दिनों में नहीं देखा है ....बहुत ही सुन्दर आप की ये पक्तियां !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!धन्यवाद जी !!!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंआदमी की बेंतिहन चाहत को उजागर करती अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बबन जी....अच्छा कटाक्ष है ......पर आज तो हालत यह है बहुत सारे घोसले चाहिए ........पर घोसले खाली भी नहीं चाहिए...
जवाब देंहटाएंसच!संतोष ही नहीं हमें!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
पुरे भरे पुरे घोसले चाहिए नरेश भाई //
जवाब देंहटाएंसच कहा .यही तो इंसानी फितरत है.
जवाब देंहटाएंबबन जी बहुत खूब इंसान की महतावकांशाओ को दर्शाती एक सुंदर रचना, आज इंसान के पास जो है, वो उसमे खुश और संतुष्ट नही है, उसे और चाहिए, इंसान की मानसिकता के गिरते स्तर का यथार्थ चित्रण...........
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति....मनुष्य के असंतोष से उपजे महत्वाकांक्षाओं के स्तर को दर्शाती ..आभार
जवाब देंहटाएंWaah Baban jee... Mann ki asimit ichhaon ko bahut hi khoobsurti se aapnein shabdon mein baandha... Waah...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा। बढिया रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...क्या बात कही है
जवाब देंहटाएंमनुष्य की लिप्सा को आपने कुशलतापूर्वक शब्दों में पिरोया है।
Lagta hai ki
जवाब देंहटाएंleo tolstoy wala "how much land does a man need?" kahani sabhi ko padhani hogi.
Nice poem Babanji, what you have written is the absolute truth of life..............it is we humans only who are full of greed.............never contented with what we have..............we always want more...........so always unhappy ............in turn unsatisfied...........result.............causing unhappiness to everyone around us!!!
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत अच्छी लगी .. आपकी रचना आज दिनाक ३ दिसंबर को चर्चामंच पर रखी गयी है ... http://charchamanch.blogspot.com
जवाब देंहटाएंThis is the first time i m reading your blog..Very beautiful creation... .For a moment i went back to my mom's lap and believe me i got recharged .those few seconds gave me an unspeakable strength to move forward onto the right path considering the base ...
जवाब देंहटाएंThis is the first time i m reading your blog..Very beautiful creation... .For a moment i went back to my mom's lap and believe me i got recharged .those few seconds gave me an unspeakable strength to move forward onto the right path considering the base ...
जवाब देंहटाएंTHANKS....@ Chandan Gunjan ....
जवाब देंहटाएंwy work got a success// keep reading//
thanks @ Chandankgunjan ....keep reading //
जवाब देंहटाएंvery true ....there is no end to greed and desire....
जवाब देंहटाएंvery true...very nice Insinuation...aadmi ki fidrat hi kuch aisi.... ek nahi anek vo bhi gonsle hindustan hi nahi puri dunai main chahiye...
जवाब देंहटाएंबहुत कटु सत्य..लेकिन इतने घोंसले बनाने के बाद भी क्या किसी एक घोंसले में शांति से रहने का सुख नसीब हुआ? बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं"आदमी हूँ एक
जवाब देंहटाएंपर ,घोसला चाहिए अनेक"
अंत हीन तृष्णा .. सुन्दर अभिव्यक्ति.