एपार्टमेंट की छत पर
मिली थी थोड़ी सी जगह
गुनगुनी धूप सकने को
तरंगित होने लगी यादे //
अब तो सपनों जैसा ही है
पिताजी की गोद में बैठकर
अलाव सेकना //
मैं नहीं दे पाया
अपने बच्चो को वैसा प्यार
जैसा मैंने पाया अपने पिता से
इन गगनचुम्बी ईमारतों में रहकर //
हम खोते जा रहे है
रिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी //
हम खोते जा रहे है
जवाब देंहटाएंरिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी |
yahi to hamara vikas hai sanvedansheel rachna
हम खोते जा रहे है
जवाब देंहटाएंरिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी //
महानगरीय सभ्यता कितना दूर कर देती हैं हमें अपनी विरासत से..बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
अतिसुंदर बब्बन जी,सचमुच "अब तो सपनो जैसा ही है पिता जी
जवाब देंहटाएंकी गोद में बैठ कर अलाव सेकना"अत्यंत भावपूर्ण सत्य है .
""आज मैं ढूँढू कहाँ,खो गए जाने किधर,
प्यारे-प्यारे पल वो हाए,प्यारे पल छिन.
अतिसुंदर बब्बन जी
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
कभी 'आदत.. मुस्कुराने की' पर भी पधारें !!
बबन जी.........बहुत सही बात कही आपने.......
जवाब देंहटाएं/हम खोते जा रहे है
रिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी /.
bahut khub, darasal hum apne riste se jyda dusareke riste me kuchh jyada hi interest rakhne lage hai,kya aisha nahi lagta hain???
जवाब देंहटाएंअब तो सपनों जैसा ही है
जवाब देंहटाएंपिताजी की गोद में बैठकर
अलाव सेकना .....
Babanji, bahut sundar rachna hai............bachpan ki yaad taaza ho gayee........bus khushkismati kahiye ki hum bhi apne bachchon ke saath, jab jab mauka lagta hai, wahi quality time spend karte hain.
जवाब देंहटाएं