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शनिवार, 18 दिसंबर 2010

आपके आ आने से


पीली साडी में
आपकी महक उड़ी ऐसी
तितलियों को
सरसों फुल खिलने का धोखा हो गया
जब आ धमकी मधुमखियाँ
तो मौसम का रंग चोखा हो गया //

जब आँचल उड़ाई आपने
तो गुब्बारे यू ही फूलने लगे
कदम जब बढ़ाया आपने
तो उबड़ -खाबड़ ज़मीन समतल हो गया //

23 टिप्‍पणियां:

  1. बबन जी....बहुत खूब..........बहुत खूब लिखा आपने...सही तुलना ...पीली साड़ी कि सरसों से.........आँचल उड़ा तो हवा चली......और गुब्बारे फूलने लगे.........पर जनाब....यह चलने से जमीन समतल होना समझ नहीं आया.......road roller से तो तुलना नहीं कर दी आपने कही..........हा हा हा हा....

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  2. आपके आने से .... हा हा हा बढिया है

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  3. किसी खास की उपस्थिति से होने वाले सुखद बदलाव...!
    अच्छी कल्पना है!

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  4. पीली सरसों, महका आँचल , यहाँ तक तो ठीक है, बबन जी ,
    पर ज़मीन समतल करके कही आप उनके वजन की बात तो नहीं कर रहे .. :)
    सुन्दर कविता ............

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  5. AApke aane se aur kuch huwa n huwa - mera mn prassann ho gaya; piche mud kar dekh lu, kahin bibi to khadi nahi.

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  6. aapke aane se babban ji....hahahaha....bahut khubji...lakin ye कदम जब बढ़ाया आपने
    तो उबड़ -खाबड़ ज़मीन समतल हो गया / samajh nahi aaya...

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  7. कदम जब बढ़ाया आपने
    तो उबड़ -खाबड़ ज़मीन समतल हो गया!.....वाह वाह.,
    काश ! उनके कदम मेरी कुटिया की तरफ मुड़ जाते तो सायद मेरे घर की तरफ आती पगडंड़ि भी अपने आपको व्यवस्थित करके समतल हो जातिं!उनके पैरों का स्पर्श पाकर खुद को भाग्यशाली महसुस करतीं! वाह भाई साहब बहुत ही सु्दर प्रस्तूति!

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  8. * फूल
    बहुत कम शब्द में आपने तो चित्र खींच दिया। बधाई।

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  9. .".कदम जब बढाया आपने , तो उबड़ खाबड़ ज़मीन समतल हो गयी"......................वाह वाह..........जैसे जैसे आपने कदम बढ़ाये................ज़मीन ने भी आपके स्वागत की तयारी में स्वयं को पहले ही तैयार कर लिया ......आपके नाज़ुक पैरों को उबड़ खाबड़ ज़मीन पर पाँव न रखने पड़े.

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  10. बहुत सुन्दर बिम्बों से सजा शब्दचित्र परोसा है आपने!

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  11. कदम जब बढ़ाया आपने
    तो उबड़ -खाबड़ ज़मीन समतल हो गया!.....वाह वाह.,
    सुंदर भावाभिव्यक्ति।
    Dhananajay Mishra

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  12. सुंदर भावाभिव्यक्ति.....।
    बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा....!!

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  13. अहसासों की सुन्दर बानगी कम शब्दों में अच्छी लगी

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