मेरे पास थी एक चिड़िया
उछलती थी
कूदती
थी
फांदती
थी
उड़ते रहती थी
कभी माँ के आँचल में
कभी पिताजी के कंधे पर
कभी भाभी की साडी से
जाती थी लिपट
कभी दोस्तों के यहाँ
कभी पड़ोसियों के यहाँ
कभी चुग लेती थी
खेतों से मटर और चना //
काम /काम /काम
काम से फुर्सत नहीं था मुझे
मैंने उसे खाना नहीं दिया
ना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //
जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //
वह थी ....
जवाब देंहटाएंमेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
उफ़!प्रेम की चिडिया का ये हश्र!!!!!!बेहद मार्मिक चित्रण कर दिया।
जवाब देंहटाएंprem ke ksharan ka marmik chitran karti hai aapki sunder kavita...
जवाब देंहटाएंबबनजी,
जवाब देंहटाएंकाफ़ी अरसे के बाद लिख रहा हूँ... क्षमा चाहूँगा...
प्रेम की चिड़िया दिल के अन्दर रहती है... और वहीँ फुदकती रहती है...
बाहर किसीको क्या पता आपके अन्दर कौन, क्या ओउर क्यों फुदक रहा है... और उसकी देखभाल भी आप ही को करनी है...
बात बड़े मर्म की है...
वाह भ्राता श्री, एक बार फिर प्रेम का करने का वहि शिला! इस बार खुद हमने ही गर्दन मरोड़ डाला ! आह्हह !... बहुत ही सुन्दर!
जवाब देंहटाएंजानते है
जवाब देंहटाएंवह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया /
-बहुत गहरे भाव!!आत्म मंथन चल रहा है.
नन्हा सा पंछी रे तू,बहुत बड़ा पिंजरा तेरा,,
जवाब देंहटाएं,उड़ना जो चाहा तो कहाँ तुझे उड़ने दिया',,
लेके तू पिंजरा उड़े,चले कभी ऐसी हवा.
नन्हा सा पंछी रे तू,बहुत बड़ा पिंजरा तेरा,,
,उड़ना जो चाहा तो कहाँ तुझे उड़ने दिया',,
लेके तू पिंजरा उड़े,चले कभी ऐसी हवा.
नन्हा सा पंछी रे तू,बहुत बड़ा पिंजरा तेरा,,
,उड़ना जो चाहा तो कहाँ तुझे उड़ने दिया',,
लेके तू पिंजरा उड़े,चले कभी ऐसी हवा.
नन्हा सा पंछी रे तू,बहुत बड़ा पिंजरा तेरा,,
,उड़ना जो चाहा तो कहाँ तुझे उड़ने दिया',,
लेके तू पिंजरा उड़े,चले कभी ऐसी हवा.
दो चिडियाँ चूँ-चूँ करती हैं
जवाब देंहटाएंदो नन्हीं परियाँ सँग-सँग चलतीं हैं
मेरे बाग़ में , हंसती हैं और मचलती हैं
दो चिडियाँ चूँ-चूँ करती हैं
झट से यूँ मुस्का देती हैं
रंग सारे बिखरा देती हैं
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंव्यस्तताओं के बीच कोमल भावनाओं का ख्याल भी रखना चाहिए!!!
बहुत सुंदर है यह चिडिया।
जवाब देंहटाएं---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
बहुत संवेदनशील बात कही है ....प्रेम भी तभी फूलता फलता है जब उसको दाना पानी मिलता रहे
जवाब देंहटाएं‘प्रेमकी चिडिया’...यानि कि अपनों से स्नेह बंधन..मां..पिताजी..भाभी..पडोसी..सब.समय की व्यथा है बबनजी...भौतिक युग मे मांनवीय मूल्यों का आधार रह ही कहां गया है..अब तो तीज त्यौहार भी एकांत मे ही होते है..प्रेम की चिडिया की यह अवस्था . .महादेवी वर्मा की पंक्तियां..’विस्तृत नभ का कोना कोना..मेरा ना कोई अपना होना..उमडी कल थी..मिट आज चली’..
जवाब देंहटाएंएक ऐसी चिड़िया जो हर किसी के
जवाब देंहटाएंदिल में होती है ये अलग बात है की
अवस्था के अनुसार इसका अर्थ
बदलता है ..अतिसुन्दर
Er. Baban ji ...very very Emotional expressions..Great lines. God bless you Dear sir.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...मित्रों
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर जी /
वंदना गुप्ता जी
सुरेन्द्र सिंह झंझट जी
मधुसुदन मुस्करा जी
मैंने उसे खाना नहीं दिया
जवाब देंहटाएंना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //
जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //
Bahoot khubsoorat....
prem rupi bel ko falne fulne ke liye pyar ka pani hi nahi dariya bahani hogi..
prem hi to insan ke vazood ka parichay hai. is chidiya ko zinda rahna zaroori hai .
जवाब देंहटाएंbaban bhai sahib.....bahut sunder shabdon mei aapne hum sab ke ander chhupi bhavnao ko vyakt kiya hai........
जवाब देंहटाएंदिल में छुपी कोमल भावनाएं
रूप चिड़िया का लेकर फ़ूद-फुदायें
पर पिंजरे में बंद रह कर
थोड़ा छटपटाये
कोई करे आज़ाद ,उड़ने दे उन्हें
स्वछन्द गगन में जहाँ चाहें
badhia hai
जवाब देंहटाएंजानते है
जवाब देंहटाएंवह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया|
सच ही कहा है आपने प्रेम कीस चिड़िया को भी दाना, पानी और सेवाकी जरूरत होती है इनसब के बिना ये भी दम तोड़ देती है,अगर इस चिड़िया को ज़िंदा रखना है तो दाना पानी, और इसकी सुधि लेनी होगी| तभी चिड़िया हमारे घर आंगन में फुदकेगी|
इस सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद|
"प्रेम से प्रभु की उत्पत्ति होती है".."जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ ईश्वर का वास नहीं होता, "प्रेम ही ईश्वर है"...अतः प्रेम तत्व का वास सदैव हमारे ह्रदय में रहना चाहिए.."प्रेम तत्व कभी ख़त्म नहीं होता...परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करूँगा हम आम इंसानों की "प्रेम की चिड़िया का वास सदैव हमारे घरों में रहे, वो कभी हमारे घर से न जाये".."प्यार की अखंड- ज्योत निरंतर जलती रहनी चाहिए"..आदरणीय बबन सर..आपके स्नेह की प्रतीक्षा में...
जवाब देंहटाएंye kavita to maine kal hi padhi thi, lekin tippani nahi ki...darasal thoda bahut jo samay milta hai main padhne me wyatit karta hoon...
जवाब देंहटाएंbahut achhi kavita hai...
Ati sunder
जवाब देंहटाएंsunder
जवाब देंहटाएंकाम से प्रेम अवश्य
जवाब देंहटाएंकोई विवशता रही थी
प्रेम की चिड़िया
काम से बेफुर्सती की
बलि चढ़ गई!
प्रेम के दर्द को महसूस कराती सुन्दर कविता । बधाई व आभार।
जवाब देंहटाएंबबन जी..........इस भौतिक वादी युग में..........दिल कि चिड़िया को हम मारे जा रहे है...........इसे पुनर्जीवित करना होगा.....फिर से इसे चखने के लिए खुला छोडना होगा..जिस से हम सब अपने दिल की आवाज़ भी सुन सके.......बहुत अच्छी रचना आपकी.......
जवाब देंहटाएंओह !!अंतिम पंक्तियाँ बेहद मार्मिक पर बहुत सुन्दर तरीके से बयां किया ....
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने दिल रूपी चिड़िया को भी खुराक की जरुरत होती है ....बहुत सुन्दर सन्देश
बबन भाई....बधाई
अत्यंत भावुकता और मार्मिकता से भरी कविता | बधाई |
जवाब देंहटाएंwaqui mein sir aapki kavita lajwab hai
जवाब देंहटाएंबबन जी एक बहुत ही उम्दा रचना मर्म को छूटी हुई, सच मे आज इंसान भोतिकता की दौड़ मे इतना लीन हो गया है, कि प्यार के भाव सूख गये है उसके मन मे................
जवाब देंहटाएंबबन जी! आपने अपने दिल से यथार्थ को स्वीकार किया है. कटु सत्य है हम सभी इस प्रेम, स्नेह, ममता रूपी चिड़िया को कटुता, घृणा, लालच के तिलिस्म से 'मार' चुके है. अब सिर्फ विशुद्ध पेशेवर हंसी, प्रेम, मित्रता रह गयी है, यह पेशेवर मित्रता न सिर्फ कार्यालयों में बल्कि घर में भी स्वार्थी हंसी, प्रेम दिखाया जाता है. जब प्रेम की 'चिडया' दिलों में जिन्दा थी तो न सिर्फ अपनों को, दोस्तों को, बल्कि गैरों से भी बिना चिंता, शर्त मिलते थे, कुशल-खेम पूछते थे, अब तो मिलना-जुलना भी शर्त से होता है. .... उस चिड़िया को 'जिन्दा' रखने की कोशिस करनी चाहिए.... आइये फिर 'शर्त' को छोड़ बिनाशर्त मिलना-जुलना शुरू करें! शरुआत तो करें...'चिड़िया' अवश्य फिर से कलरव करने लगेगी.......
जवाब देंहटाएंसादर
atyant sundar pradarshan ...
जवाब देंहटाएंदिल टूट रहे हैं प्रेम के न रहने से..
जवाब देंहटाएंपरिवार बँट रहे है प्रेम के न रहने से..
दोस्त दुश्मन हुए प्रेम के न रहने से..
संत भी गुनाह कर रहे हैं प्रेम के न रहने से..
हम भी हैवान हो रहे है प्रेम के न रहने से..
संजीव गौतम ..
बबनजी , आपकी यह रचना दिल को छु गयी ,वाकई में अगर प्रेम दिल में उजागर रखना है तो उसे वक़्त तो देना ही होगा .कब ,कितना इसका कोई माप यन्त्र नहीं हैं. वैसे जब जागो तभी सवेरा.........अभी भी जाग जाईये , देर नहीं हुई है.:-))
जवाब देंहटाएंThe tragedy of love is dat it starts wid fear n ends wid tear :(
जवाब देंहटाएंThanks to esteemed readers//
जवाब देंहटाएंMpnali ji /
vijay lakshmi bhuwania ji /
sanjeev gautam ji /
sandhy ji /
step ahead/
kiran arya ji /
Baban ji ye jo prem ki chidiya jise aapne mar dala use aap fir se jivit karen, ye aapke hath me hai, aise mardene se kam nahi chalega, agar dilme prem ki chidiya ki jagah khali raha to wahan nafrat ki chidiya aakar ghar banalega,
जवाब देंहटाएंaur main chahta hun ki prem ki jagah sirf prem hi rahe, nafrat ko kabhi usme rahne keliye jagah mat dijiyega, ye meri aapse gujaris hai,nibedan hai,
हिर्दयविदारक , आँखों लोरिय गइल , बहुत अंदर की चोट भाई जी साधुवाद रउरा लेखनी के !
जवाब देंहटाएंमेरे दिल की चिड़िया सहम गयी आपकी कविता पढ़ कर
जवाब देंहटाएं-------------------------------------
दिल के घोसले में रहने वाली चिड़िया
मर गयी
टूट गए
भावनायों के फडफडाते पंख
क्योंकि दिल दिल न रहा
पिंजरा था.
जहाँ रखी न गयी
स्नेह की जल- कटोरी
और प्यार का दाना !
अफ़सोस
पर शायद
दिल के कोने में पड़ा है उस चिड़िया का अंडा
प्रेम की आंच
अपनेपन की गर्माहट
आस बांध सकती है
चिड़िया के फिर फुदकने की .
कोशिस तो करो .....
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bahut hi achha...
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील...............!!
जवाब देंहटाएंवह थी ....
जवाब देंहटाएंमेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया ...मर्मस्पर्शी रचना