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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

मिटटी ,बांस और हम


मिटटी ...
नर्म होती है
जब गीली होती है
पक जाती है वह
जब आग पर
रंग ,रूप आकार नहीं बदलती //

बांस ...
जब कच्चा होता है
जिधर चाहो ,मोड़ दो
पक जाने पर
नहीं मुड़ेगा //

आदमी ...
कब पकेगा
मिटटी की तरह
बांस की तरह
शायद कभी नहीं क्योकि
दिल तो बच्चा है जी //

20 टिप्‍पणियां:

  1. बबन जी! 'इंसान' ही इस धरती पर एक ऐसा प्राणी है जिस पर आप भरोसा नहीं कर सकते... उसे चाहे आप कितना प्रशिक्षित करें वह अपने 'स्वार्थी' स्वभाव को नहीं छोड़ सकता है.... माँ-बाप, सामाज, विद्यालय, विश्वविद्यालय कोई कितना भी प्रयास कर ले इंसान अपने 'स्वार्थ' रूपी राक्षस को मरने में सफल नहीं हो सकता है, देहरादून के राजेश गुलाटी की घटना इसका एक अकाट्य उदाहरण है ऐसे कई उदाहरण हैं..... दिल बच्चा नहीं है... बड़ा सयाना है जी! बच्चा-बच्चा करके ये कहता है ये दिल मांगे more....

    सादर!

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  2. सुप्राभत पुष्कर जी @..
    .बड़ी ही सार्थक बात कही आपने /
    दिल बच्चा नहीं
    दिल सयाना है
    दिल मांगे MORE ....हर चीज में

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  3. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  4. वाह बबन जी ..अच्छी सूच को निकलल है आप ने इंसानी फितरत की ....पर इन्सान का अहं जो है न वो जरा सा आजेब है ....अभी वो क्या सोचता है ....में खुद मिटटी में मिल जाऊंगा ....तब देखि जाएगी ...पर बांस की तरह बना भी पर सूखने के बाद जेसा !!!!!!!!!!!!!1

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  5. Bahut Sahi kaha Babban Bhai Ji ki Dil to Bachcha hain !!!
    Bahut Sundar !!!

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  6. बबन जी, इंसान भी अगर मिटटी या बांस की तरह, पक जाएगा.................या अपनी जिद्द से टस से मस नहीं होगा..................तो वो विभिन्न परिस्थितियों में खुद को संभल नहीं पायेगा.................मनुष्य ही तो है जो हर स्थिति में जी सकता है, उसे अगर पकना है तो बड़प्पन में...........ताकि जिद्द की नौबत ही न आये !!!!!

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  7. मानव प्रगति शील है... और यहीउसे बच्चे बने रहे को मजबूर करता है......क्युकी हरपल, हरदिन कुछ सीखना जो है...........

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  8. आपकी अब तक की एक सुंदर कवितायों में से एक है . सार्थक है . शुभ कामनाएं

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  9. Babanji bachpan hai hi aisa khoobsoorat samay jisme se insaan kabhi bhi bahar nahi nikalna chahta......... Nice writing...

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  10. Wah...Baban ji manav ki paripakvata ka mitti aur baans ki sangya se jodkar bejod vyakhya ki hai....ati sundar.....
    Aadmi mitti aur baans ki tarah kahan pak sakta hai, Dil se to manushya bacchha hi hai na woh iske khol se bahar aana chahta hai. Kitna hi prayas kar le....paripakva zindagi jeete jeete itna ukta jata hai ki man bahalav ke liye bacche ka roop dharan kar leta hai aur vaisi hi harkatein karne lagta hai.....wakaai insaan ka paripakva hona bahut kathin hai.....

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  11. jindagi ki antim sachchai to yahi hai, ise aap jhuthla kaise sakte hain, bans ke khatoli pe chada kar is mittime hi to bilin hona hai, ye to hui ek sachchai,

    aur aapki kavita ki sachchai is-se alag hai, aadmi kachche bans ya gili mitti ko jis tarah chahen rup de sakte hain magar fir paka hua bans ya paki hui mitti ki aap kuchh kar nahi pate ve apne hi rangrup me rahta hai, agar aap is-se chherchhar karte hain to tut jata hai.

    lekin manusya to bahurupiya hai, apna swarth keliye rang badal leta hai, yahi fark hai,
    bada hone par bhi apna dharm badal leta hai, aadmi ko chhahiye apne irade par kayam rahe,

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  12. Babban ji,sachmuch apne prakriti aur admi ki bahut sukshm tulana ki hai...badhiya kavita.

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  13. खूबसूरत प्रस्तुति.आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  14. यही हो रहा है आजकल हर तरफ। हर कोई अपने स्वार्थ की रोटी सेंकने में लगा हुआ है। ... वास्तव में आलोचना वह दर्पण है, जिसमें इंसान अपना असली चेहरा देखता है। ... अब ऐसे मनुष्यों के बीच रहकर जो व्यक्ति दूसरों से समझौता नहीं कर सकता, वह व्यवहार में कैसे सफल हो सकता है। ...
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः *जय श्री कृष्णा*

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  15. कमलेश पाण्डेय18 मई 2015 को 5:40 am बजे

    स्वार्थ से ही प्रकृति (सृष्टि ) की उत्पति हुई है >>>फिर मनुष्य चेतन है बाँस ,मिटटी अचेतन --फर्क तो होगा ही

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