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शनिवार, 25 दिसंबर 2010

फर्क

रौशनी के पीछे
भागने का काम है
पतंगों का //

मैं इंसान हूँ , मेरे दोस्त
मुझे चकाचौंध से क्या लेना
मैं तो बना हूँ ....
अँधेरे को उजाले में बदलने के लिए //

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अहसास...कर्म प्रधान का संदेश

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  2. अच्छी सोच ....मैं इंसान हैं की जगह -- मैं इंसान हूँ कर लें

    यहाँ आपका स्वागत है

    गुननाम

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  3. Wah Babanji ... Bahut hi sunder Panktiyan hain..
    Aap to bane hi hain andhere ko ujalon me badalne ke liye.. Prayas karte rahiye saflta jaroor milegi.. All the best...........

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  4. वाह ..वाह ..बबन जी ...छोटी किन्तु भावपूर्ण सकारात्मक भाव से लाबरेज .रचना ...बधाई !!!!!!!!

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  5. वक़्त की कोख में उदासी है,
    अब समन्दर में मीन प्यासी है!

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  6. //मैं तो बना हूँ ....
    अँधेरे को उजाले में बदलने के लिए //....
    अर्थपूर्ण बात......सार्थक कर्म करते रहो.....वही जरूरी है.......

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  7. insaan andheron se ladne ke liye hi bana hai... aur safal insaan wahi hai jo samaaj ke liye andhere mein roshni dikhata hai... apki rachna marmsparshi hau.... badhai ...

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