आँख न मिलाई,तो हाथ क्या मिलाओगे जागी ज़नता को,अब कैसे रुलाओगे मैं तो ठहरा भिखमंगा, मेरे दोस्त इसीलिये स्विस बैंक का हिसाब मांगते है. Bilkul sahi. 1. "Think to exit Party basis Democracy". 2. "Think How politics will become business of losses".
बबन जी.........६२ साल से किसी ने नहीं पूछा.....तो अब क्या गारटी है कि ........हिसाब मांगने से कुछ पता चल जाएगा...........नेता चिकने घड़े होते है.........उन्हे कोई फरक माहि पड़ता......पर फिर भी जो हमें करना चाहिए वो करते रहे.........
अफ़सोस, हिसाब मांगने से कुछ नहीं होगा...
जवाब देंहटाएंबहुत सह लिया है उसने ..... अगर जाग गई जनता तो कैसे सुलाओगे..
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और तीखा प्रहार..
aapke comment ke liye shukriya...
जवाब देंहटाएंवक्त हिसाब लेगा...
जवाब देंहटाएंसटीक!
आपकी यह सशक्त और सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर सुशोभित की गई है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html
आंखों में आँखें डालकर बोलना
जवाब देंहटाएं६२ साल तक तुमने क्या किया
वतन झुलस रहा है , मेरे दोस्त
इसीलिए,अब तुमसे हिसाब मांगते है
एक न एक दिन तो नेताओं को हिसाब देना ही होगा.
आँख न मिलाई,तो हाथ क्या मिलाओगे
जवाब देंहटाएंजागी ज़नता को,अब कैसे रुलाओगे
मैं तो ठहरा भिखमंगा, मेरे दोस्त
इसीलिये स्विस बैंक का हिसाब मांगते है.
Bilkul sahi.
1. "Think to exit Party basis Democracy".
2. "Think How politics will become business of losses".
बहुत खूब ... पर स्विस बेंक का हिसाब नहीं मिलने वाला ... अब तक तो पैसा गायब भी हो चूका होगा....
जवाब देंहटाएंबबन जी.........६२ साल से किसी ने नहीं पूछा.....तो अब क्या गारटी है कि ........हिसाब मांगने से कुछ पता चल जाएगा...........नेता चिकने घड़े होते है.........उन्हे कोई फरक माहि पड़ता......पर फिर भी जो हमें करना चाहिए वो करते रहे.........
जवाब देंहटाएंवो सुबह कभी तो आएगी … अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
जवाब देंहटाएंहिसाब इतना गडबड है कि दे ही नहीं पाते हिसाब ...
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