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बुधवार, 10 नवंबर 2010

हे ..ईश्वर

हे इश्वर
तू जला मन की दीपक
भर दे तू मुझ में
परोपकार का तेल
और दे दे
धैर्य का
एक दिया सलाई .
जब कभी बुझाने लगे
यह दीपक ...
तो फिर से जला सकू ...

थोड़ी सी लज्जा दे
थोडा सा मृदुलभाषी बना
पहना दे मुझे
विन्रमता का गहना
हे ..ईश्वर
मेरे दिल को अपना नीड़ बना ॥

8 टिप्‍पणियां:

  1. यह सब माँगने से नहीं मिलेगा ..स्वयं में पैदा करना होगा .. :) अच्छे भाव

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  2. jab kabhi bujhane lage...yah deepak...to phir se jala sakun...
    khud mein vishwaas rakhate hue...karm ki bhavana ke sath ishwar se kuchh mangana...
    shayad yahi sahhi tariqa hai jeene ka!

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  3. वाह बबन जी, बहुत ही बढ़िया ..........यदि हर इंसान की यही प्रवृत्ति हो जाये तो वो स्वर्ग ढूँढने की चाह ही छोड़ देगा,सारे सुख तो उसे यही मिल जायेंगे,क्यूँकि मानसिक सुख से बड़ा तो कोई सुख है ही नहीं., इश्वर उसके ह्रदय में वास करेंगे ..........सब जानते हैं .....आप भले तो जग भला !!!!

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  4. बबन जी.सुन्दर प्रार्थना ............
    //हे इश्वर
    तू जला मन की दीपक
    .
    .
    .
    हे ..ईश्वर
    मेरे दिल को अपना नीड़ बना//
    ईश्वर दिल में ही आकार बस जाए ..इस से बढिया बात क्या हैं........पर उसे अपने दिल में बसाने के लिए मुझे क्या-२ करना पड़ेगा........क्या मै उसके लिए तैयार हूँ ...........

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  5. nice one.
    jaha chah waha rah,
    dil se ek athot lijiye,
    bhagwaan ko bhi aap ka avashya hi sunenge.

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  6. धन्यवाद अति सुन्दर . जय श्री सीताराम :)

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