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शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा

आजिज हूँ
बच्चों के डिमांड के आगे
सबको चाहिए
कुछ न कुछ
शहर जाते ही
हवा लग जाती है उन्हें ॥

पत्नी के ताने
अलग से
क्या करते है आप
सब कहाँ से कहाँ निकल गए
ज़माने से कदम मिलाईये
अपने लिए भी
बँगला -गाडी खरीदिये ॥

आखिर... मन को
कब तक दबाउंगा
एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा ॥

8 टिप्‍पणियां:

  1. :)..अपने को बिकने मत दीजिए ....क्या आप पत्नि की हर बात मानते हैं ?

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  2. Bahut khoob Baban ji, aajke bhotiktavaadi samay me badti hue mahtavkanshao se upje dard ko darshati ek behtareen rachna, shukriya share karne ke liye..........:)))

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  3. बबन जी , बिक कर क्या सबकी डिमांड पूरी हो सकती है....??
    नहीं , कभी नहीं........तो फिर सबको अपनी चादर देख कर ही पाँव पसारने चाहिए ........यह बात समझ आ जाए तो अच्छा, वरना ..........................:-))

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  4. अति सुन्दर भाई साहब आपकी रचना ....
    हमें पक्का विश्वास है की आप कभी नहीं बिकेंगे | भावनाए प्रकट करने के लिए धन्यवाद |

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  5. ज़िन्दगी है .. यूँ ही चलेगी ... तो क्यूँ न सत्य स्वीकारें और ख़ुशी ख़ुशी जी लें ... शुभकामनाएं ...

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