आजिज हूँ
बच्चों के डिमांड के आगे
सबको चाहिए
कुछ न कुछ
शहर जाते ही
हवा लग जाती है उन्हें ॥
पत्नी के ताने
अलग से
क्या करते है आप
सब कहाँ से कहाँ निकल गए
ज़माने से कदम मिलाईये
अपने लिए भी
बँगला -गाडी खरीदिये ॥
आखिर... मन को
कब तक दबाउंगा
एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा ॥
:)..अपने को बिकने मत दीजिए ....क्या आप पत्नि की हर बात मानते हैं ?
जवाब देंहटाएंBahut khoob Baban ji, aajke bhotiktavaadi samay me badti hue mahtavkanshao se upje dard ko darshati ek behtareen rachna, shukriya share karne ke liye..........:)))
जवाब देंहटाएंKavita bahut achha Hi Babanji
जवाब देंहटाएंबबन जी , बिक कर क्या सबकी डिमांड पूरी हो सकती है....??
जवाब देंहटाएंनहीं , कभी नहीं........तो फिर सबको अपनी चादर देख कर ही पाँव पसारने चाहिए ........यह बात समझ आ जाए तो अच्छा, वरना ..........................:-))
अति सुन्दर भाई साहब आपकी रचना ....
जवाब देंहटाएंहमें पक्का विश्वास है की आप कभी नहीं बिकेंगे | भावनाए प्रकट करने के लिए धन्यवाद |
ज़िन्दगी है .. यूँ ही चलेगी ... तो क्यूँ न सत्य स्वीकारें और ख़ुशी ख़ुशी जी लें ... शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंsantosh param dharm hai... yahi seekhna seekhana hai!
जवाब देंहटाएंrachna acchi hai!
ha ha ha...jabardast brother.
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