
क्या आपका ताल्लुक गाँव से है ...
अगर हां.....
पूरी तरह समझ लेगे ...
कविता का मर्म ॥
गरीब लड़का हु ....
उपर से निम्न जाती का ....
सरकार से इंदिरा आवास मिला है ...
अन्नपुर्णा योजना का अनाज
मिलता है प्रति माह ॥
पेंशन के रूपये अलग से ॥
काम ...???
अब काम क्या करना ....
मुफ्त की रोटी तोड़ता हू...
दिन भर तास खेलता हू ...
सच पुछो....
गरीब ही बना रहना चाहता हू ॥
मेरे जितने भी बच्चे हो ॥
मुझे क्या चिंता ?
उनको भी मिलेगा ...
इंदिरा आवास /मुफ्त का राशन और पेंशन ॥
नशे की तरह ....
लत लग गयी है मुझे ...
सरकारी राशन / किरासन लेने की ...
अपने पैरो पर खड़े
होने का तरीका ....
कोई सरकार क्यों नहीं सिखाना चाहती ?
जानता हू ...मैं
किसी भी पार्टी की सरकार आये
ये सुबिधाये जारी रहेगी ...
एक " लोकप्रिय सरकार " देने
का वायदा जो किया हैं
नशे की तरह ....
जवाब देंहटाएंलत लग गयी है मुझे ...
सरकारी राशन / किरासन लेने की ...
बिलकुल सही कहा भाई जी...योजनाओ का आधार किसी की चारित्रिक उनत्ती हो ऐसा तो सच में नहीं दीखता उलटे सही में ही अपने हक की तरह .....इन योजनाओ के लिए अपने को और भी ज्यादा जरुरत मंद बताते नहीं आघाते ....सही नवज पकडे है भाई जी....
भाई आपकी लेखनी को सादर नमन.
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढ़कर अन्दर की पीड़ा पुनः हरी हो गयी. वर्तमान नीति-नियंताओं की तुष्टिवादी, जातिगत सोच एवं कृत्य निकट भविष्य में निश्चित रूप से हमारे देश के आर्थिक व सामाजिक पतन का कारण बनेगा.