पिता जी !!!
जिन्हें वह बाबूजी कहा कहता था ...
के आकस्मिक निधन की सूचना
मोबाइल पर मिलते ही
वह थोडा विचलित ज़रूर हुआ
मगर ...ऐसा नहीं हुआ
कि आँखों से आंसुओ की धार
रुकी ही नहीं ॥
वह सिर्फ इतना जानता था
पिताजी गरीब किसान थे
किसी तरह पढाया उसे
उसे याद है ....
बचपन में देखी थी उसने
उनके माथे पर आयी ...
पसीने की बूंदें ॥
कैसे आयी ये बुँदे
वह बचपन में समझ नहीं सका
और .....बाद में
उसे समझने की नौबत ही नहीं आयी ॥
मुखाग्नि के बाद ....
पुरोहित द्वारा
गरुड़ पुराण सुनाने की प्रक्रिया
के दौरान
वह बार -बार
पसीने की बूंदों का राज
जानना चाहता था ॥
मगर , पूछे किससे
विधवा माँ ....
आसन्न वैवध्य के असमंजस में
रो -रो कर स्वं जार हो गयी थी ॥
कचोटती रही उसकी आत्मा
इस प्रशन के उत्तर के लिए ॥
दसकर्म और द्वादसा से निपट
लेने के बाद
माँ कुछ शांत नज़र आ रही थी।
पूछ ही लिया माँ से --
सरसों की फसल में
लाही का प्रकोप
आलू की फसल में
झुलसा का प्रकोप
और , मकई की फसल का
बह जाना बाढ़ में
और इनसबके बीच
तुम्हारे भविष्य की चिंता का
अंतर्द्वंद
पसीने की बूंदों में बदल गया था ॥
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