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बुधवार, 17 अगस्त 2011

मनुहार


ओ हवा ...
थोडा सा बह लो
मेरी महबूबा के लिए
उसके पसीने सुखा दो //

ओ फूल ...
थोडा सा महक जाओ
ओ दिनकर ...
थोड़ा सा छिप जाओ बादलों में
ओ पक्षियों ...
थोड़ा सा चहचहां लो ...
मेरी महबूबा के लिए

मेरी गैरहाजरी में
मेरी महबूबा को खुश रखने का
मनुहार करता हूँ ॥//



16 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चित्र के साथ सुंदर कविता बधाई

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  2. सुनो भाई, कोई तो ध्‍यान दो.

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  3. अच्छी कविता है। सोचपूर्ण
    बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  4. मेरी गैरहाजरी में
    मेरी महबूबा को खुश रखने का
    मनुहार करता हूँ ॥// waah bababan ji waah

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  5. राकेश जी ,मनुहार इसलिए की ...अब इंसानों से बिस्वाश उठ गया

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  6. सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...

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  7. आपका मनुहार तो बहुत ही अच्छा है /बहुत ही प्यार से लिखी गई शानदार रचना /बधाई आपको /



    please visit my blog,and leave a comment also.thanks

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  8. बहुत ही बढ़िया सर।
    ----
    कल 29/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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