ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
तू उनके लिए बरस
जिनके कुएं
सरकारी पन्नों पर बने हैं //
ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
फाड़ दे
जनता के कान पर जमे
भाषणों और अश्वाश्नों की काई को //
ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
इतना बरस
टूट जाए तटबंध नदियों की
खोल दे पोल
इन्जिनीर और ठ्केदार के मिलीभगत की //
घनघोर बरस
तू उनके लिए बरस
जिनके कुएं
सरकारी पन्नों पर बने हैं //
ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
फाड़ दे
जनता के कान पर जमे
भाषणों और अश्वाश्नों की काई को //
ओ मेघ ! तू बरस
घनघोर बरस
इतना बरस
टूट जाए तटबंध नदियों की
खोल दे पोल
इन्जिनीर और ठ्केदार के मिलीभगत की //
जबरजस्त ...सार्थक रचना भाई जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन व्यंगात्मक रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
खेतों और किसानों और लोगों की प्यास बुझा दे मेघ, बाकी काम के लिए तो पूरी पलटन तैयार है.
जवाब देंहटाएंvery nice lines
जवाब देंहटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
बहुत ही सार्थक रचना । आज के दौर में सरकारी कामो में जो गफले चल रहे हैं उसे उजागर कर दिया
जवाब देंहटाएंसुन्दर और प्रासंगिक रचना ...............
जवाब देंहटाएंवर्षा ऋतू ... पोल खोलक भी होती है आज पता .... चला वाह सर जी
जवाब देंहटाएंvyangya . sarkari tantra par:)
जवाब देंहटाएंbehtareen... varsha ritu bata hi deti hai. kya kaise kyon chal raha hai files me:)
bahut sunder likha aapne....sahi hai pol khulne do jara unki bhi...
जवाब देंहटाएंसरकारी मशीनिरी और आम जन कि अकर्मन्यता पर बेहतरीन कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंओ मेघ ! तू बरस
जवाब देंहटाएंघनघोर बरस
इतना बरस
टूट जाए तटबंध नदियों की
खोल दे पोल
इन्जिनीर और ठ्केदार के मिलीभगत की //
बेहतरीन कटाक्ष...
पोल खोलने वाले मेघ...रोचक...कितनों को भयभीत कर रहे होंगें...
जवाब देंहटाएंbahut khoob pandey jee, mantrumugs kar diya aapne.
जवाब देंहटाएंवर्षा की पहली फुहारों ने बगीचों के फूलों ,हरी पत्तियों को नहला सा दिया , लाल गुलमोहर .. जो वर्षा ऋतू में कम ही दिखाई देते हैं , ने मानो ... नै लाल रंग की लिपस्टिक लगा ली है // हरी पत्तियों के ऊपर के धूल हट जाने से ... फोटो सिंथेसिस तेजी से शुरू हुआ ... जिससे उनकी हरीतिमा ... में अनोखा सौन्दर्य छाया गया है ... आइये वर्षा ऋतू के आने के बाद .. प्रकृति में आये बदलाब का अवलोकन करे
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