अजीबोगरीब है ...
मेरे बच्चो के शगल
मकई के बालों का मुछं बना
डराते हैं अपनी माँ को //
दौड़ पड़ते है ..
रंग-बिरंगी तितलियों के पीछे
नहर में छलांग लगा देते है
नहाने के वक़्त
और हाथों से घोंघा निकाल लेते है//
आश्चर्य होता है मुझे
जब ये कन्धा देते है
मुहर्रम के ताजिये को
और बड़े उनके रास्तों को रोकते है //
इनके दोस्त ...
फरहान और अख्तर भी
तन-मन से करते है
छठ घात की सफाई //
जब फसं जाता है ट्रेक्टर खेतों में
उसे निकालने दौड़ पड़ते है ...
अरे भाई ... !
शहर में नहीं,
गाँव में रहते है मेरे बच्चे //
मेरे बच्चो के शगल
मकई के बालों का मुछं बना
डराते हैं अपनी माँ को //
दौड़ पड़ते है ..
रंग-बिरंगी तितलियों के पीछे
नहर में छलांग लगा देते है
नहाने के वक़्त
और हाथों से घोंघा निकाल लेते है//
आश्चर्य होता है मुझे
जब ये कन्धा देते है
मुहर्रम के ताजिये को
और बड़े उनके रास्तों को रोकते है //
इनके दोस्त ...
फरहान और अख्तर भी
तन-मन से करते है
छठ घात की सफाई //
जब फसं जाता है ट्रेक्टर खेतों में
उसे निकालने दौड़ पड़ते है ...
अरे भाई ... !
शहर में नहीं,
गाँव में रहते है मेरे बच्चे //
बहुत सशक्त रचना अरे भाई शहर में नहीं गाँव मेराहते हैं मेरे बच्चे।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाइयाँ ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
शहर और गाँव संग बचपन के भोलेपण का सब जगह यही हाल है तभी तो बच्चे भगवान का रूप हैं
जवाब देंहटाएंकितने अच्छे है ये बच्चे .......बच्चे हैं इसलिए इतनी अच्छे है .....
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