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शनिवार, 21 सितंबर 2013

बस य़ू ही ...

रुपयों की तंगी से कितने तंग सो जाते है लोग
खुली सड़क बिना बिछावन य़ू ही सो जाते है लोग //

पग-पग पर हालातों से समझौता करते हैं लोग
दोस्ती दिखाने को बस य़ू ही मुस्कुराते हैं लोग //

बातों को काटते-काटते , सर काट देते हैं लोग
जिंदगी बस यु ही,लड़ते-झगड़ते बिताते है लोग //


पहले  मुसीबतों में खुलकर मदद को आते थे लोग
अब  माँ-बहनों को देख,य़ू ही लंगोटा खोल देते है लोग //


14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद !!

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  2. आभार संजय जी . हौसला बढाते रहे

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  3. अंतिम पंक्तियां वर्तमान को बिना लाग लपेट के उजागर करती हुयी ,,,,पूर्णतः सुदर ..

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  4. पग-पग पर हालातों से समझौता करते हैं लोग
    दोस्ती दिखाने को बस य़ू ही मुस्कुराते हैं लोग //

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  5. पग-पग पर हालातों से समझौता करते हैं लोग
    दोस्ती दिखाने को बस य़ू ही मुस्कुराते हैं लोग //

    ...बिल्कुल सच...बहुत उम्दा प्रस्तुति...

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  6. बस य़ू ही ...
    रुपयों की तंगी से कितने तंग सो जाते है लोग
    खुली सड़क बिना बिछावन य़ू ही सो जाते है लोग //

    पग-पग पर हालातों से समझौता करते हैं लोग
    दोस्ती दिखाने को बस य़ू ही मुस्कुराते हैं लोग //

    बातों को काटते-काटते , सर काट देते हैं लोग
    जिंदगी बस यु ही,लड़ते-झगड़ते बिताते है लोग //


    पहले  मुसीबतों में खुलकर मदद को आते थे लोग
    अब  माँ-बहनों को देख,य़ू ही लंगोटा खोल देते है लोग //


    किया खूब

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  7. बातों को काटते-काटते , सर काट देते हैं लोग
    जिंदगी बस यु ही,लड़ते-झगड़ते बिताते है लोग //

    बहुत खूब,सुंदर रचना !

    RECENT POST : हल निकलेगा

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  8. जीवन जीने के नए ढंग खोज लेते हैं यूँही लोग ...

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