राजभवन/ राष्ट्रपति भवन को कूच करता
यह जुलुस
आम आदमी का नहीं हो सकता //
ख़ास बात है
इस जुलूस में
बैनर बदले है
मांगे बदली है
मगर !
बैनर पकड़ने वालों का चेहरा एक ही है //
माइक पर जो व्यक्ति कल
सरकार की नीतियों का बखिया उधेड़ रहा था
आज वही शख्श ...
सरकार की उन्ही नीतियों पर
गंगा -जल डाल रहा है //
जाने दीजिये ...
इस जुलूस को
ये राजनितिक पार्टी की जुलूस है //
यह जुलुस
आम आदमी का नहीं हो सकता //
ख़ास बात है
इस जुलूस में
बैनर बदले है
मांगे बदली है
मगर !
बैनर पकड़ने वालों का चेहरा एक ही है //
माइक पर जो व्यक्ति कल
सरकार की नीतियों का बखिया उधेड़ रहा था
आज वही शख्श ...
सरकार की उन्ही नीतियों पर
गंगा -जल डाल रहा है //
जाने दीजिये ...
इस जुलूस को
ये राजनितिक पार्टी की जुलूस है //
ये गया राम। ये आया राम ,
जवाब देंहटाएंये सब रामों का एक राम ,
ये निराकार ये सर्वाकार ,
इसको कहते रजनीत राम ,
करलो बच्चों इसको प्रणाम।
आभार वीरेंद्र कुमार शर्मा भाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
..बिल्कुल सच...बहुत उम्दा प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
सटीक !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सच है ये सभी एक ही हैं ... बदलती आस्थाएं हैं इनकी ...
जवाब देंहटाएंजो व्यक्ति कल
जवाब देंहटाएंसरकार की नीतियों का बखिया उधेड़ रहा था
आज वही शख्श ...
सरकार की उन्ही नीतियों पर
गंगा -जल डाल रहा है //
सही है इनका तो जिधर धन, उधर हम वाला किस्सा है