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रविवार, 2 जून 2013

गुलबदन

माना कि वो गुलबदन है
मगर कांटें हैं -ज़ुबानों में
आँखों में लिए
इश्क का खंजर
घुमती हैं बेख़ौफ़ //

बेजुबान रहकर भी
रौंद देती है वफ़ा के पेड़ को
जड़   से
पता नहीं ..
 कौन सा आरा है उनके पास ? 

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