तुम कितने डरपोक हो आग
घर भी जलाते हो तो गरीबों का //
देखो तो ..
तुम्हारे सात फेरे लेकर
किये गए वादे
टूट रही है भरभराकर
तुम गला देते हो .
लोहे और अलमुनियम
बना देते ही ईट
कच्ची मिटटी से
तुम कब जला पाओगे
आदमी के लोभ/लालच/काम/क्रोध
मगर !
और धन लोलुप्ता
तुम्हारा कमाल एक ही बार दिखा है ..
जब प्रह्लाद को न जलाकर
,तुमने जला दिया था होलिका को //
घर भी जलाते हो तो गरीबों का //
देखो तो ..
तुम्हारे सात फेरे लेकर
किये गए वादे
टूट रही है भरभराकर
तुम गला देते हो .
लोहे और अलमुनियम
बना देते ही ईट
कच्ची मिटटी से
तुम कब जला पाओगे
आदमी के लोभ/लालच/काम/क्रोध
मगर !
और धन लोलुप्ता
तुम्हारा कमाल एक ही बार दिखा है ..
जब प्रह्लाद को न जलाकर
,तुमने जला दिया था होलिका को //
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंक्या लपेटा है आग को !
बहुत-बहुत शुक्रिया @ जोशी भाई
हटाएंBahut badiya pandey ji
जवाब देंहटाएंshukriya @ Upendra shukla bhai :D
हटाएंअंतिम पंक्तियों पर कुछ कहना चाहती है
जवाब देंहटाएंआप को और पूरे परिवार को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं...!!
@ संजय भास्कर
बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं..
RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
शानदार प्रस्तुति, अच्छी कविता से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट "सपनों की भी उम्र होती है "पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
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