कोई खुशबु नहीं होती...
सीमेंट में
बालू में
बजरी में
और लोहे की सरियों में
मगर...
जब सब मिलते है तो
बनता है मकान //
सीमेंट में
बालू में
बजरी में
और लोहे की सरियों में
मगर...
जब सब मिलते है तो
बनता है मकान //
मकान....
भींगने से बचने के लिए नहीं है...
मकान....
तलाक के कागज पर दस्खत करने की जगह नहीं है
मकान ....
दुश्मन को परास्त करने का प्लान बनाने की जगह भी नहीं ..
मकान तो एक गर्भ है..
जहां ..
प्रेम और प्यार का बीज पनपता है ..//
और जब...
यह पनपता है..
तो आने लगती है खुशबु मकान से
क्या बात है...
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंआभार बड़े भाई
हटाएंऔर तभी यह मकान बन जाता है एक सुन्दर सपनो का घर … बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहौसला आफज़ाई के लिए आपका आभार संध्या जी
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