मन
बुनता है जाल
रोकता है रास्ता
इंसान को फंस कर गिरता देख
हँसता है मन //
पता नहीं कब...
मन बना लेता है
घोटाले का प्लान
अपहरण की साजिश
और कर बैठता है
दुष्कर्म /बलात्कार और हत्या //
सच में ...
जलेबी की तरह है
मन की बनावट
बुनता है जाल
रोकता है रास्ता
इंसान को फंस कर गिरता देख
हँसता है मन //
पता नहीं कब...
मन बना लेता है
घोटाले का प्लान
अपहरण की साजिश
और कर बैठता है
दुष्कर्म /बलात्कार और हत्या //
सच में ...
जलेबी की तरह है
मन की बनावट
गहरा कटाक्ष ... तरस आता है कुछ लोगों की सोच पर ...
जवाब देंहटाएंहौसला आफज़ाई के लिए आपका आभार
हटाएंबहुत खूब...इस बार दर्शन सुख से वंचित कर दिया...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसत्य बयान किया है आपने.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने की जलेबी की तरह ही है....मन की बनावट ....
जवाब देंहटाएंसही कहा। मन की बनावट बिल्कुल जलेबी की तरह है।
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