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मिश्री सी घुल जाती कानों में
जब बजते हैं तेरे कंगन
फिसल जाता है मेरा यौवन
जब हो तेरा मखमली आलिंगन //
सांसों की गर्माहट से पिघले हम-तुम
एक दूजे में हम लिपटे हैं गुम-सुम
देख अदा तेरी,कामदेव भी खूब तड़पता
जब लेती तुम, मेरे अधरों पर चुम्बन //
उड़े दुपटा या फिर फिसले उर से आँचल
शर्म नहीं,जब कह दे कोई प्रेमी पागल
कभी हाथ फिसलते तेरे कटी पर
स्पर्श तेर उरों का, कर देता तन में कम्पन //
कभी सहलाता तेरे कानो की बाली
कभी तेरी गेसुओं की मेखला प्यारी
जल जाता ऊर्जा का दीपक रोम-रोम में
पाकर तेर प्यार की गठरी का अवलंबन //