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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011
मखमली आलिंगन
मिश्री सी घुल जाती कानों में
जब बजते हैं तेरे कंगन
फिसल जाता है मेरा यौवन
जब हो तेरा मखमली आलिंगन //
सांसों की गर्माहट से पिघले हम-तुम
एक दूजे में हम लिपटे हैं गुम-सुम
देख अदा तेरी,कामदेव भी खूब तड़पता
जब लेती तुम, मेरे अधरों पर चुम्बन //
उड़े दुपटा या फिर फिसले उर से आँचल
शर्म नहीं,जब कह दे कोई प्रेमी पागल
कभी हाथ फिसलते तेरे कटी पर
स्पर्श तेर उरों का, कर देता तन में कम्पन //
कभी सहलाता तेरे कानो की बाली
कभी तेरी गेसुओं की मेखला प्यारी
जल जाता ऊर्जा का दीपक रोम-रोम में
पाकर तेर प्यार की गठरी का अवलंबन //
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bahut hi acchi post
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखते है, अच्छा लिखते है
जवाब देंहटाएंदिल से लिखते है,बड़ा अच्छा लिखते
आमंत्रण दे रहा हूँ,ब्लॉग में आकार,
कमेन्ट देने का,अच्छा तो फिर मिलते है
नवरात्री की मेरी और से बहुत बहुत शुभकामनाएँ,...
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंnavratri ki badhai
Mast ho gaye hum subah aaj K
जवाब देंहटाएंsuruat hui aapke kavita k aagaaj se
Hamara lagata k raua k likhai k saath jama kare k khub shauk ba tabahiye ta har ago kavita k saath dhasu chhaya chitra ba
जवाब देंहटाएंehe tarah likhi aur likhte rahe
namaskar