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बुधवार, 28 सितंबर 2011
इश्क का पता
इश्क को पता जानने
मैं एक दिन घर से निकला
बीयर -बार में पहुंचा
जाम टकराते हुए मस्त जोड़े थे
मैं दावा तो नहीं कर सकता
वे कुबारे थे या शादीशुदा
शायद यहाँ इश्क मौजूद था //
शाम में झाडियों में देखा
इश्क ...
एक दूसरे के गोद में बैठा था
मनो लोहे और चुम्बक का मिलन हो //
इश्क को मैंने
खंडहरों में / कालेजों में
नाचते -गाते और गुनगुनाते देखा //
अंत में ...
एक शादी-शुदा के घर में
इश्क को खोजने पहुंचा
घर के दरवाजे पर ही
एक बुढ़िया मिल गयी
माँ थी
उनकी आँखों में लिखा था
बेटा ! गलत जगह आ गए
ये इश्क का घर नहीं
यह अविश्वास का घर है
मैं वापस लौट गया
क्योकि माँ कभी झूट नहीं बोलती //
मैं समझ गया दोस्त
इश्क नहीं बंधना चाहता
अग्नि के फेरों में
निकाह के काबुल नाम में
और चर्च की प्रार्थना में //
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सटीक ..अच्छी प्रस्तुति ... इश्क आज़ादी चाहता है बंधन नहीं ..
जवाब देंहटाएंवाह बेह्तरीन चित्रण किया है।माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हो॥
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या .शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना... बबन भाई, आपको सपरिवार नवरात्र की मंगलकामनाएं
जवाब देंहटाएंऐसा इश्क सिर्फ इश्क के लिए है...रिश्तों को सम्हाल पाना इसके बस की बात नहीं...
जवाब देंहटाएंप्रेम मित्र मेरे नहीं.........कोई लेमनचूस....
जवाब देंहटाएंजहाँ जिस्म दो बैठ के......श्वांस करे महसूस.....
श्वांस करें महसूस.........चंद पल साथ गुजारें.....
फिर पकडे अपनी राह......ढूँढने नए सहारे.....
कह मनोज यह सत्य.....प्रेम तो मन की क्रीडा...
सुख के नहिं बस मीत.....संग में बांटे पीड़ा......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहमें भी बताइए...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..................!!
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